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अपने जन्मस्थान पहुंचकर भावुक हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, हुए नतमस्तक, माथे पर लगाई मिट्ठी

President Ram Nath Kovind
Updated Jun 27, 2021 | 15:39 IST

President Ram Nath Kovind kanupr visit: कानपुर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जब अपने गांव परौंख पहुंचे तो उन्होंने यहां झुककर जमीन को प्रणाम किया और माथे पर मिट्ठी लगाई।

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President Ram Nath KovindPresident Ram Nath Kovind
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
मुख्य बातें
  • अपने पैतृक गांव पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
  • कोविंद अपनी पत्नी और बेटी के साथ पथरी देवी मंदिर गए, जहां उन्होंने पूजा-अर्चना की
  • कोविंद परौंख गांव के प्राथमिक स्कूल पहुंचे, जहां उन्होंने लोगों को संबोधित किया

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अभी कानपुर के दौरे पर हैं। आज सुबह वो कानपुर देहात जिले के परौंख गांव में अपने जन्म स्थान पहुंचे, जहां उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने उनका स्वागत किया। इस मौके पर उस समय एक दुर्लभ पल आया जब राष्ट्रपति कोविंद ने परौंख गांव के पास हेलीपैड पर उतरकर अपनी जन्मभूमि पर नतमस्तक होकर मिट्टी को स्पर्श किया।

राष्ट्रपति ने बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकरको को श्रद्धांजलि अर्पित की और मिलन केंद्र और वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज का दौरा किया और एक जन संबोधन समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा, 'मैंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी कि गांव के मेरे जैसे एक सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर के दिखा दिया। आज इस अवसर पर देश के स्वतन्त्रता सेनानियों व संविधान-निर्माताओं के अमूल्य बलिदान व योगदान के लिए मैं उन्हें नमन करता हूं। सचमुच में, आज मैं जहां तक पहुंचा हूं उसका श्रेय इस गांव की मिट्टी और इस क्षेत्र तथा आप सब लोगों के स्नेह व आशीर्वाद को जाता है।' 

राष्ट्रपति ने कहा, 'भारतीय संस्कृति में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी। माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। गांव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कार मेरे परिवार में रहा है, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या संप्रदाय के हों। आज मुझे यह देख कर खुशी हुई है कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है।' 

मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं। मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे, आगे बढ़कर, देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही। मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन व राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया।

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