- राजपाल एंड संस से प्रकाशित हुई है साइंस फिक्शन प्रमेय
- हिंंदी के बेस्टसेलर लेखक भगवंत अनमोल की नई किताब
Book Review: "अपूर्णता ही खुशी है, जीवन है और उम्मीद है। पूर्णता अकर्मण्यता है, नीरसता है और अंत है।" कुछ यही सार है हाल ही में राजपाल एंड संस से प्रकाशित बेस्टसेलर लेखक भगवंत अनमोल के नए उपन्यास 'प्रमेय' का। यह उपन्यास जितना साइंस फिक्शन है, उतना ही दार्शनिक, उतना ही वैचारिक और उतना ही रोमांटिक। इस किताब में हर पाठक के लिए कुछ न कुछ है। इसे सिर्फ साइंस फिक्शन कह देना भर इसके दायरे को कम करता है।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पुरस्कृत भगवंत नए विषयों पर कलम चलाने के लिए पहचाने जाते हैं। इससे पहले भगवंत के उपन्यास 'जिंदगी 50-50' और 'बाली उमर' बहुचर्चित रह चुके हैं। जहां 'जिंदगी 50-50' किन्नरों के दुख दर्द बयां करता है, वहीं 'बाली उमर' पांच बच्चों के वयस्क होने की रोचक कहानी है। इस बार लेखक ने अपनी कलम अध्यात्म, विज्ञान और धर्म पर चलाई है। कवर पर भी लिखा गया है "अध्यात्म सृजन है, विज्ञान शोध है और धर्म नियम है।" इसे साइंस फिक्शन की केटेगरी में शामिल किया गया है लेकिन मुझे लगता है कि इस उपन्यास को सिर्फ साइंस फिक्शन कहना इसके साथ न्याय नहीं होगा।
शुरुआत में किताब पढ़ते हुए थोड़ा उबाऊ लग सकती है, लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, किताब बांध लेगी। बुलेट की तरह यह किताब भी शुरुआत में थोड़ा वक्त लेती है, फिर एक बार जब लय पकड़ लेती है तो इस किताब को छोड़ने का मन ही नहीं करता। अध्यात्म, विज्ञान और धर्म की गंभीर बातों के बीच लेखक ने जो दो प्रेम कहानी चलाई हैं, उन्होंने इस किताब को गंभीरता के बोझ तले दबने नहीं दिया और इसे गंभीर पाठको के साथ आम पाठको के लिए भी पठनीय बना दिया।
ये प्रेम कहानियां पाठकों को बांध कर रखती है। भले ही वह कहानी तारकेय और सुनैना की हो या फिर सूर्यांश और फातिमा की। तारकेय और सुनैना की प्रेम कहानी के सहारे जहां लेखक ने मध्यकालीन व्यवस्था को दर्शाने की कोशिश की है। वहीं फातिमा और सूर्यांश की प्रेम कहानी के सहारे समकालीनता का भी चित्रण किया है। जिससे हर पाठक किताब से खुद को जोड़ पाता है। विज्ञान, अध्यात्म, प्रेम और धर्म जैसे गूढ़ विषय होने के बावजूद इस उपन्यास के डायलॉग और विचार गजब की ताजगी लिए हुए हैं। जैसे-
" जो बातें जुबान नहीं कह सकती, वह नजर कह लेती हैं और जो नजर नहीं कर पाती वह एक छुअन कर देता है।"
" कवियों की दुनिया सच मे काल्पनिक होती है, वरना इतनी सुंदर पृथ्वी को नजरअंदाज कर कोई अपनी प्रेयसी की तुलना चांद से कैसे कर सकता है? "
" किसी चांद से निकाह करने से पहले यह देख लिया करो कि वह किस ग्रह के चक्कर लगा रही है।"
कोई किताब कितनी लंबी दूरी तय करेगी यह उस किताब में शामिल विचार तय करते हैं। यही कारण रहा है कि इतने बड़े पाठकों को स्नेह पाने वाले युवा लेखकों पर यह प्रश्न उठता रहा है कि उनकी किताबों में विचार नहीं होते है लेकिन इस किताब की सबसे बड़ी खासियत भी यही है कि यह किताब अपने साथ विचार लिए हुए है। व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के दौर में यह किताब युवा पाठकों के पास कहानी के साथ विचार लेकर जा रही है। प्रेम कहानियां जहां पाठकों को बांधें रखने का काम करती हैं वहीं आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक विचार एवं तर्क पाठकों को नयी दिशा में सोचने के लिए मजबूर करते हैं। यही इस उपन्यास की खासियत है, यही इस किताब की जीत है।
अगर इस किताब की आलोचना करनी हो तो वह यह की जा सकती है कि इसमें सभी धर्मों की बुराइयों पर जोरदार प्रहार किया गया है, ईश्वर की नई परिभाषा गढ़ने का प्रयास किया गया है। जो काम बड़े-बड़े लेखक कई मोटी-मोटी किताबें लिखकर नहीं कर पाए, वह भगवंत ने मात्र 144 पेज की किताब में दर्शाने की कोशिश की है। यहां पर लेखक किताब को थोड़ा विस्तार दे सकते थे, जिससे किताब में और गहराई आती। दूसरा यह कि शुरुआत को थोड़ा और पठनीय बनाया जा सकता था।
इस किताब में भी गंभीरता के साथ लोकप्रियता के सारे तत्व मौजूद हैं। अंत में यही कहना चाहूंगा कि भगवंत का यह प्रयोग सफल रहेगा। मुझे विश्वास है कि प्रमेय की सफलता देखकर हिंदी में अन्य लेखक भी साइंस फिक्शन लिखने के लिए प्रेरित होंगे।