- हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है हिंदी दिवस
- हिंदी को लेकर कई दिग्गज कवियों ने लिखी हैं कविताएं
- समय-समय पर उठती रही है हिंदी को राष्ट्र भाषा देने की मांग
Hindi Diwas 2021 Speech, Essay, Nibandh, Bhashan: हर साल जहां 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है तो वहीं 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। ऐसे समय में जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, ऐसे में हिंदी की महत्ता और भी हढ़ जाती है। महात्मा गांधी ने तो हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने को लेकर कई बार बहस हुई लेकिन राजनीति आड़े आ गई और यह राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई।
हिंदी दिवस के अवसर पर स्कूल, कॉलेजों में कई तरह की निबंध प्रतियोगिता होती है। हिंदी केवल भाषा ही नहीं बल्कि एक दूसरे को बांधने का सशक्त माध्यम भी है। कई सरकारी संस्थानों में भी हिंदी दिवस के अवसर पर लेखन प्रतियोगिता, काव्य गोष्ठी और साहित्यकारों को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है।
हिंदी के आधुनिक कवि सुनील जोगी द्वारा हिंदी को लेकर एक कविता जो काफी प्रसिद्ध हुई थी वो इस प्रकार है-
हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान है
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरण
हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण
हिंदी हमारी वेदना हिंदी हमारा गान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
हिंदी हमारी आत्मा है भावना का साज़ है।
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी द्वारा हिंदी को लेकर लिखित कविता -:
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।
हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।
कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही।
इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
Hindi Diwas Shayari & Quotes :
1-हिंदी से हिन्दुस्तान है
तभी तो यह देश महान है,
निज भाषा की उन्नति के लिए
अपना सब कुछ कुर्बान है
2-हिंदी दिवस के कुछ नारे, स्लोगन
हर कण में हैं हिन्दी बसी
मेरी मां की इसमें बोली बसी
मेरा मान है हिन्दी
मेरी शान है हिन्दी...
3-भारत के गांव की शान है हिंदी
हिन्दुस्तान की शक्ति हिंदी,
मेरे हिन्द की जान हिंदी
हर दिन नया वाहन हिंदी
हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिंदी को लेकर कुछ ऐसी पंक्तिया रची थी जो अपने आप में सबकुछ बयां करती हैं। हरिश्चंद्र जी ने कहा था, 'निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल॥'