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Kumbhalgarh Fort: चीन की दीवार को टक्कर देती है कुम्भलगढ़ किले की दीवार, जानें- इस किले की दिलचस्प कहानी

Updated Feb 11, 2021 | 14:17 IST

कुम्भलगढ़ किले का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 15 वीं शताब्दी में करवाया गया। इस किले को बनने में करीब 15 साल का समय लगा तथा इतिहास में इस किले के निर्माण कार्य को लेकर अनेको कहानियां मौजूद हैं।

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Kumbhalgarh Fort (iStock)
मुख्य बातें
  • 1443 में शुरू हुआ था कुम्भलगढ़ किले का निर्माण कार्य, बनने में लगे थे 15 साल।
  • इस किले की दीवार की लंबाई लगभग 36 किमी है और इसकी चौड़ाई 15 से 25 फीट है।
  • इसी किले में बीता था पृथ्वीराज चौहान और महाराणा सांगा का बचपन।

समुद्र तट से 1100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कुम्भलगढ़ किले को लेकर अनेको कहानियां इतिहास में मौजूद हैं। जी हां आपने विश्व की सबसे बड़ी दीवार द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का नाम तो सुना ही होगा। लेकिन आपको बता दें विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार भारत के राजस्थान में स्थित राजसमन जिले में ‘’कुम्भलगढ़’’ किले की है। इस दीवार की लंबाई लगभग 36 किमी है और इसकी चौड़ाई 15 से 25 फीट है। इस किले का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 15वीं शताब्दी में किया गया था। इस किले को बनने में लगभग 15 साल का समय लगा था। किले के निर्माण के बाद महाराणा कुम्भा ने इस किले को सिक्कों पर अंकित करवाया था। ऐसे में आइए जानते हैं विश्व की धरोहर और भारत की आन बान शान को प्रकट करते इस किले के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

किले के निर्माण को लेकर दिलचस्प कहानी

कुम्भलगढ़ किले को लेकर इतिहास में अनेको कहानियां मौजूद हैं। महाराणा कुम्भा ने इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में करवाया था। इस किले की निर्माण की कहानी बेहद दिलचस्प है। 1443 में राणा कुम्भा ने इस किले का निर्माण कार्य शुरू करवाया, लेकिन लगातार किले के निर्माण कार्य में अड़चने आने लगी और निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ सका। राजा इस बात से बेहद परेशान हो गए। उन्होंने इससे चिंतित होकर एक संत को बुलाया। संत ने इस किले की भूमि को देखकर बताया कि इस किले का निर्माण कार्य तभी आगे बढ़ेगा, जब इस जगह पर कोई मनुष्य अपनी इच्छा से अपनी बलि देगा।

यह बात सुनने के बाद राणा कुम्भा काफी चिंतित हो उठे। महाराजा को इस अवस्था में देख संत ने कहा कि मैं खुद इस किले के लिए अपनी बलि दूंगा। इसके लिए उसने राजा से आज्ञा मांगी और कहा कि इसके लिए उसे पहाड़ी पर जाने दिया जाए और जहां पर उसके कदम रुक जाएं, वहां उसे मार दिया जाए। उस स्थान पर देवी का एक मंदिर भी बनाया जाए। संत के बताने के अनुसार ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर चलने के बाद रुक गया। यहां पर उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया और इस स्थान पर एक देवी के मंदिर का निर्माण करवाया गया। इसके अलावा इतिहास में अन्य कहानियां भी मौजूद हैं।

पृथ्वी राज और महाराणा सांगा का बचपन बीता

आपको बता दें महाराणा कुम्भा के रियासत में कुल 82 किले आते थे, जिसमें से राणा कुम्भा ने स्वयं 32 किलों के निर्माण का नक्शा खुद तैयार किया था। इतिहास के मुताबिक महाराणा कुम्भा से लेकर महाराजा राज सिंह के समय तक मेवाण पर हुए हमलों के दौरान राज परिवार इसी दुर्ग में रहता था। इतना ही नहीं पृथ्वीराज चौहान और महाराणा सांगा का बचपन भी इसी किले में बीता। महाराणा उदय सिंह को भी पन्नाधाय ने इसी किले में छिपाकर उनका पालन पोषण किया था।

महाराणा कुम्भा की याद में मनाया जाता है महोत्सव

कुम्भलगढ़ किला अरावली पर्वत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। राजस्थान का यह किला चित्तौड़गढ़ किले के बाद मेवाड़ के मुख्य किलों में शामिल है। यहां पर लाखों की संख्या में पर्यटक इस किले का दीदार करने के लिए आते हैं। इस किले को विश्व धरोहर की उपाधि से भी नवाजा गया है। आपको बता दें परमवीर महाराणा कुम्भा की याद में राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा यहां पर हर साल तीन दिनों के लिए कुम्भलगढ़ महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दौरान इस किले को लाइटों से शानदार तरीके से सजाया जाता है।

विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार

कुम्भलगढ़ किले की दीवार विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। आपको बता दें इस दीवार की लंबाई लगभग 36 किलो मीटर है और इसकी चौड़ाई 15 से 25 फीट है। कहा जाता ही कि इस किले का निर्माण मेवाण की रक्षा हेतु करवाया गया था। इस किले को लेकर इतिहास में कई दिलचस्प बातें मौजूद हैं।

इस किले का नहीं हुआ बालबांका

राजपुताने की आन बान शान को प्रकट करता यह किला अपने साथ कई दिलचस्प कहानियों को लेकर खड़ा है । इस किले को जीतने के लिए इस पर कई आक्रमण हुए। इस दुर्ग पर पहला आक्रमण महाराणा कुम्भा के शासनकाल में महमूद खिलजी ने किया, लेकिन वह इस किले को जीतने में नाकामयाब रहा। इसके बाद गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन वह भी असफल रहा।

किले की दुर्लभ कहानी

इस किले का एक काला सच भी इतिहास में मौजूद है। महाराणा कुम्भा जिन्होंने इस किले का निर्माण करवाया और जिनकी तलवार से दुश्मन भी थरथरा जाता था, उनकी हत्या उनके पुत्र उदय सिंह ने ही मेवाण का महाराणा बनने के लिए छल से कर दिया था। लेकिन सामंतो ने उन्हें महाराजा के रूप में स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद उनके दूसरे पुत्र रायमल मेवाण के राजा बने।