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बड़ी समस्या बन रहा है डिप्रेशन, मन को ठीक करके अवसाद को करें दूर 

Updated Apr 30, 2022 | 11:01 IST

अवसाद यानि डिप्रेशन, इसका मूल क्या है? इतने सारे युवा डिप्रेशन में क्यों जी रहे हैं? वास्तविक समस्या शुरू होने से पहले ही आपका मन अवसादग्रस्त हो जाता है। आध्यात्मिक गुरु एवं फोर सेक्रेड सीक्रेट्स की लेखिका प्रीताजी ने अवसाद दूर करने के टिप्स दिए हैं। 

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Overcome Your Depression with these tips

Overcome Your Depression : अवसाद यानि डिप्रेशन, इसका मूल क्या है? इतने सारे युवा डिप्रेशन में क्यों जी रहे हैं? वास्तविक समस्या शुरू होने से पहले ही आपका मन अवसादग्रस्त हो जाता है। पर अच्छी बात यह है कि आप अपने मन को ठीक करके अवसाद से मुक्त हो सकते हैं। आध्यात्मिक गुरु एवं फोर सेक्रेड सीक्रेट्स की लेखिका प्रीताजी (Prithaji) कहती हैं कि 'स्वयं' के साथ लड़ाई, अवसाद का मूल कारण है। यदि हम स्वयं के साथ शांति नहीं बरतते हैं, तो हम अनजाने में अपने से जुड़ी हर चीज की आलोचना करेंगे।  हमारी उपस्थिति, हमारी स्थिति, हमारा घर और परिवार और स्वयं हमारा जीवन। जब हम शांति में नहीं होते, तब हमारे अंदर एक युद्ध चल रहा होता हैं। हम अपनों के खिलाफ ही बंटे हुए हैं। 

हमारे आंतरिक संघर्ष की जड़ में एक निरंतर टिप्पणी की आदत बसी है, एक ऐसी टिप्पणी जो हमारे जीवन के हर अनुभव को 'यह होना चाहिए' या 'यह नहीं होना चाहिए' में विभाजित करती है। यही आदत हमें तुलना करने के लिए प्रेरित करती है। यही आदत हमें आंतरिक युद्ध की ओर ले जाती है। 

आध्यात्मिक गुरु प्रीताजी की मानें तो, जब आप अपने शरीर को देखते हैं, तो आप उसे वैसा नहीं देखते जैसा वह है। आप इसके हर इंच पर भी टिप्पणी करते हैं कि इसे ऐसा होना चाहिए या ऐसा नहीं होना चाहिए। जब आप अपने परिवार के साथ होते हैं, तो आप उनके सामने वैसे नहीं होते जैसे वो हैं। आप हर सदस्य पर टिप्पणी करते हैं कि ऐसा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। जब आप अपने घर में प्रवेश करते हैं, तो आप इसे पसंद नहीं करते हैं। आप इस पर भी टिप्पणी करते हैं कि इसे इतना बड़ा या छोटा होना चाहिए था या इतना बड़ा या छोटा नहीं होना चाहिए था। 

जब आप काम पर जाते हैं, तो आप उद्देश्य की भावना से नहीं भरे होते हैं। आप रचनात्मकता की भावना से भरे नहीं होते हैं। आप हर दिन को जज करते हैं कि आपको कहीं और होना चाहिए था या आपको यहां नहीं होना चाहिए था। आप अपने अंदर एक आलोचक, एक “आतंरिक आलोचक” लिए हुए  घूमते हैं। आप अपने ही दुश्मन बन जाते हैं। 

इस आंतरिक युद्ध को अपने भीतर समाप्त करने का अर्थ है अपनी आंतरिक स्थिति का प्रेक्षक बनना। जब आप प्रेक्षक बन जाते हैं तो सारे भाष्य/आलोचनाएं निरर्थक हो जाते हैं और वे सूखे पत्तों की तरह आपसे दूर हो जाते हैं। वे जागरूकता की नदी में बह जाते हैं। एक गहरी शांति की अनुभूति, एक गहन आनंद की अनुभूति आपके अस्तित्व से स्फुटित होती है। चेतना की इस सुंदरी स्थिति में, प्रत्येक विफलता को स्वयं या किसी अन्य को दोष दिए बिना आत्मसात किया जा सकता है। प्रत्येक पराजय में  स्वयं को सही ठहराए बिना और दूसरे की निंदा किये बिना भी पराजय स्वीकार की जा सकती है। अन्य लोगों के शब्द और कथन के अनुसार स्वयं को देखने का आपका तरीका या अपने शरीर को देखने का नजरिया आप में नहीं पनप सकता। आप अपने 'क्रोधित सेल्फ', अपने 'jealous सेल्फ' और अपने अकेलेपन के साथ सहज हैं। आपका कोई हिस्सा ऐसा नहीं है जिसे आप गलत समझते हैं। आप अपने आप में संपूर्णता के साथ सहज हैं। आप उबर चुके हैं। आप संपूर्ण हैं। 

आध्यात्मिक गुरु प्रीताजी कहती हैं कि मनुष्य नाजुक प्राणी हैं। यदि प्रत्येक परिवार में, माता-पिता जागरूक हो सकें और पहचान सकें कि उनके बच्चे नीरसता में, अवसाद में, उदासी या भय में जा रहे हैं - यदि वे उन्हें महसूस कर सकें, यदि वे उनकी बात सुन सकें, तो आप अपने बच्चों को अवसाद से दूर कर सकते हैं। सहयोग के रिश्ते में सहयोगी एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। यदि आप ठहर कर एक-दूसरे की आंखों में देखें, महसूस करें कि दूसरा क्या महसूस कर रहा है, और दूसरे को सुनें और समझें, आप उन्हें भी उस अवसाद से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं। 

काम के दौरान, प्रत्येक संगठन को प्रफ़ेशनल के साथ व्यक्तिगत संबंध के लिए समय देने पर विचार करना चाहिए। सभी को रुकना चाहिए, एक-दूसरे की भावनाओं से जुड़ना चाहिए, भावनात्मक मजबूती के लिए उनका सहयोग करना चाहिए और उनकी बात को सुनना चाहिए। तभी हम इस दुनिया को ठीक कर सकते हैं। जैसे-जैसे ''आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस'' दुनिया भर में छा रहा है, ''हार्ट इंटेलिजेंस'' का भी उदय होना चाहिए। दुनिया को दुखों से उबारने का यही एकमात्र तरीका है।