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Relationships during corona : कोरोना काल में रिश्ते हुए ऑनलाइन मगर भावनाएं हुईं ऑफलाइन

श्वेता सिंह | सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर
Updated Aug 07, 2020 | 18:52 IST

Relationships during corona Lockdown : रिश्तों की मीठी डोर न जाने कब डिजिटल रूपी पतंग में बंध गई पता ही नहीं चला। एक तरफ कोरोना का संकट तो दूसरी ओर हमारे-आपके रिश्तों का डिजिटलीकरण हो गया।

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तस्वीर साभार:&nbspShutterstock
Relationships during corona
मुख्य बातें
  • कोरोना ने हम सबको घर में रहने को मजबूर कर द‍िया है
  • लेक‍िन इसका असर संबंधों पर भी पड़ा है
  • लोग एक दूसरे से म‍िल नहीं पा रहे ज‍िसका सीधा असर भावनाओं पर पड़ा है

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत को डिजिटल भारत बनाने का सपना इस तरह से आसान हो जाएगा, शायद की किसी ने सोचा था। पलक झपकते ही कोरोना ने इस पहल को न सिर्फ साकार कर दिया बल्कि पूर्ण तरीके से इसका अनुसरण भी होने लगा। स्कूल जाने की बजाय बच्चे ऑनलाइन पढ़ने लगे। पेट्रोल पंप से लेकर हर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए लोग प्लास्टिक मनी यानी क्रेडिट या डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करने लगे, लेकिन क्या आपने गौर किया कि इन सब के बीच आप कितने मशीनरी हो गए हैं। आपकी भावनाएं जो अपनों को देखकर छलक पड़ती थीं अचानक से उनमें ठहराव आ गया है। आइए समझते हैं कैसे इस कोरोना की महामारी ने हमारे समूचे व्यक्तित्व को बदलकर रख दिया है। 

बहनों ने ऑनलाइन बांधी राखी 
राखी का त्‍योहार इस बार भी मनाया गया, लेकिन इस बार बहनें भाई की कलाई पर डिजिटली राखी बांधी। वीडियो कॉल के जरिए भाई-बहनों के बीच साल 2020 की राखी मनाई गई। 

शिक्षक और छात्र का रिश्ता इंटरनेट के तार से जुड़े 
कोरोना संक्रमण ने भारत में इंटरनेट के तार को आवश्यकता रुपी तार से इस तरह से कनेक्ट कर दिया कि अब हर रिश्ता इसी से बंधा है। एक दिन स्कूल न जाने से जहां स्कूल से बच्चे की डायरी में कारण बताओ नोटिस आ जाता था वहीं आज पूरी व्यवस्था ही इंटरनेट से चल रही है। जो बच्चे दाई की मदद के बिना टॉयलेट तक नहीं जा सकते, आज वो भी अपने घर में बैठे डिजिटली पढ़ाई कर रहे हैं। एक अजीब सी क्रांति आ गई है। शायद इसी को कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है।  

कपल्स का रोमांस हुआ डिजिटल  
सुल्तानपुर की मिसेज काजल का कहना है कि दिल्ली में कार्यरत उनके पति घर नहीं आ सकते। उन्हें भी घर वाले दिल्ली जाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। कोरोना महामारी में फोन पर बात करने से जी नहीं भरता। पति से वो रोमांस वीडियो के जरिए करती हैं। घंटों एक दूसरे से वो डिजिटली जुड़े रहते हैं।    

नाना नानी, दादा-दादी सब हो गए डिजिटल  
बच्चों के हाथों में फोन देखकर उनके बिगड़ने की बात करने वाले और अपने जमाने को बेहतर बताने वाले नाना नानी, दादा-दादी भी डिजिटल हो गए हैं। दूर बैठे अपने बच्चों को देखने के लिए उनसे बातें करने के लिए वो भी स्मार्ट को स्मार्टली चला रहे हैं। अपने नाती-पोतों को वीडियो कॉल करके घंटों कहानियां सुनाई जा रही हैं।   

@TOI

डिजिटल होने के बावजूद सिमट गईं भावनाएं  
कोरोना महामारी में एक तरफ जहां तकनीक ने दूर बैठे लोगों को देखने, उनसे बात करने की सुविधा दी, वहीं उनके भावनाओं को सीमित कर दिया। लोग घंटों बातें तो कर रहे हैं, लेकिन दिल से एक-दूसरे का जो मेल था, वो कहीं खोता सा जा रहा है।   

कोरोना से रिश्तेदार की मौत पर नहीं पहुंचे लोग  
कोरोना महामारी के इस दौर में भले ही रिश्ते ऑनलाइन हो गए हैं, लेकिन सच कहें, तो भावनाएं ऑफलाइन हो गई हैं। कोरोना से एक व्यक्ति की मौत पर उसके ही सगे-संबंधी नहीं पहुंचे। खून के रिश्तों ने कोरोना के भय से अपने सगे रिश्तेदार को अंतिम विदाई देने भी नहीं पहुंचे।  

तमिलनाडु में नहीं करने दिया अंतिम संस्कार  
कोरोना काल जब अतीत में तब्दील हो जाएगा, तो इसकी कहानियां भी उतनी ही भयावह होंगी। समाज में ऐसे ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जो हमारी अगली पीढ़ी को हमसे नफरत करने पर मजबूर कर सकती है। तमिलनाडु में कोरोना से एक नर्स और एक 52 साल की मृत्यु के बाद गांव वालों ने सड़क खोद दी, रास्ता रोक दिया और गांव में शवों का अंतिम संस्कार करने से रोक दिया।  

कभी ऐसा सोचा भी नहीं था कि ऐसा वक्त आएगा जब लोगों के दुःख-दर्द में शामिल होने की बजाय लोग महज वीडियो के जरिए जुड़ेंगे और औपचारिकता पूरी करने के बाद उनके मन में उसके लिए कोई भाव ही नहीं रह जाएंगे। डिजिटल प्लेटफार्म पर आगे बढ़ना बहुत आवश्यक है, लेकिन भावनाओं को यूं ऑफलाइन करना न कल सही था, न आज उचित है और न ही आने वाले कल के लिए कारगर होगा।