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जोड़ों के दर्द और गठिया का आयुर्वेद में इलाज, वात-पित्त-कफ के संतुलन से मिलेगी निरोगी काया

Treatment of joint pain and arthritis in Ayurveda
Updated Feb 09, 2021 | 11:55 IST

वात-पित्त और कफ को संतुलित कर जोड़ों के दर्द और गठिया जैसी बीमारी से मुक्ति संभव है। आपकी अनुशासित दिनचर्या भी इस रोग से लड़ने में लाभकारी है।

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Treatment of joint pain and arthritis in AyurvedaTreatment of joint pain and arthritis in Ayurveda
संतुलित और अनुशासित दिनचर्या स्वस्थ जीवन का आधार है-(तस्वीर के लिए साभार - pixbay)
मुख्य बातें
  • जीवन मे छोटी छोटी बातें ध्यान रखकर हम जोड़ों के दर्द से कैसे मुक्त रह सकते हैं
  • शरीर के पंच तत्वों में से आकाश और वायु तत्व से वात बनता है
  • वात पूरे शरीर में ऊर्जा व रक्त के संचार का कारण है

अनीता निहाली

नई दिल्ली: आजकल लगभग हर घर में एसिडिटी, जोड़ों के दर्द, रक्तचाप और डायबिटीज, इन चार में से किसी न किसी रोग से पीड़ित कोई व्यक्ति  मिल जाता है। आयुर्वेद में जोड़ों के दर्द को ‘संधि शूल’ कहा जाता है। आर्ट अफ लिविंग के श्री श्री तत्त्वा पंचकर्म से जुड़े डॉ लोकेश रतुरी, सीनियर आयुर्वेदिक वैद्य हमें बताते हैं आयुर्वेदिक चिकित्सा के द्वारा और जीवन मे छोटी छोटी बातें ध्यान रखकर हम जोड़ों के दर्द से  कैसे मुक्त रह सकते हैं, और जोड़ों के दर्द से ग्रसित होने पर दर्द से छुटकारा पाने के क्या क्या उपाय हैं।

इसको समझने से पूर्व आयुर्वेद के मूल सिद्धांत के अनुसार त्रिदोषों अर्थात वात, पित्त और कफ को समझना होगा। यदि इन तीनों को संतुलन करने की कला आ जाए तो व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। शरीर के पंच तत्वों में से आकाश और वायु तत्व से वात बनता है। वात पूरे शरीर में ऊर्जा व रक्त के संचार का कारण है और शरीर में सभी प्रकार की गतियां भी इसी के कारण होती हैं। पित्त, अग्नि और जल  तत्वों से बना है। यह पाचन का काम करता है। जल व पृथ्वी से कफ की सरंचना होती है यह देखता है कि हर कोशिका को पोषण मिल रहा है या नहीं। ‘सन्धि शूल’ का प्रधान कारण वात है। शरीर में वात बढ़ता है तो जोड़ों का दर्द, नींद कम आना आदि समस्याएं हो जाती हैं।

क्या है कफ-पित्त-वात की कड़ी?

शरीर में पहले वात का संचय होता है फिर प्रसार, अगर वात जमा होगा तो पेट के निचले भाग में होगा, वह बढ़ता है फिर पूरे शरीर में फैलने लगता है फिर जो स्थान कमजोर हो वहाँ जाकर बैठ जाता है,  पहले-पहल असुविधा होगी फिर दर्द होने लगता है। यह पूरी प्रक्रिया होने में कम से कम छह महीने का समय लगता है। गर्मी के मौसम में वात का संचय होता है, वर्षा में  वात का प्रकोप  होता है, पतझड़ में उसका प्रसरन होता है और  सर्दी में शूल का कारण बनता है। यदि इसे पहले ही ठीक कर लिया जाता तो ठंड में इसका असर नहीं होता।  

सभी की प्रकृति अलग-अलग 

आयुर्वेद की दृष्टि से सभी की प्रकृति अलग-अलग होती है। जिनमें आकाश और वायु तत्व अधिक होता है उनकी वात प्रकृति होती है। जिनमें अग्नि तत्व ज्यादा होता वे पित्त प्रकृति के होते हैं। कफ प्रकृति में जल और पृथ्वी तत्व ज्यादा होता है। एक साम्य स्थिति होती है, जिसमें पांचों तत्व समान होते हैं। प्रकृति हमें जन्म से ही मिलती है, उसे हम बदल नहीं सकते, लेकिन हम उसके अनुसार अपना आहार-विहार कर सकते हैं। जिन्हें वात विकार हो रहा है, उन्हें वात वर्धक आहार विहार का सेवन नहीं करना चाहिए। उन्हें जानना चाहिए कि जिस खाने की तासीर ठंडी है वह वात को बढ़ाएगा।

भोजन में छह रसों की मौजूदगी 

भोजन में छह रस होते हैं, मधुर, तिक्त, लवण कटु, अम्ल और कषाय। कटु, तिक्त और कषाय युक्त भोजन पदार्थ वात को बढ़ाते हैं, सूखा भोजन जैसे चिप्स, क्रैकर आदि तथा चना, राजमा, आदि वात वर्धक  है। ज्यादा बोलने से भी वात बढ़ता है, ज्यादा यात्रा करने से या नींद सही न होने से, ठंडी हवा से, इंफेक्शन से, मानसिक चिंता, भय, से भी वात बढ़ता है। भावनाओं पर नियंत्रण न होने, तनाव युक्त जीवन शैली से भी वात बढ़ जाता है ।

भोजन की ना पचना कई रोगों का कारक

जो भोजन हम खा  रहे हैं वह यदि न पचे तो अनपचा भोजन शरीर में जमा हो जाता है, यह जोड़ों में जमा हो जाता है,उसे आम कहते हैं। यदि सुबह उठने का मन न करे शरीर में आलस रहे तो आम जमा है, मानना चाहिए। आम अपने आप में ही कई रोगों का कारण होता है। इसे भगाने का तरीका है एक तो सोते समय गरम पानी पियें। पाँच दिन खिचड़ी का सेवन करें तो निराम हो जाएगा।  औषधि निर्धारण से पूर्व आम-निराम की व्यवस्था करनी होती है। यदि आम के साथ वात होता है तो तेल लगाने से दर्द और  बढ़ जाता है। जो भोजन मधुर व लवण रस प्रधान हो और जिस भोजन का तासीर गरम होती है, वह वात शामक है। रोगी को गरम स्थान पर रखा जाए तो वात कम होता है। गिलोय का उपयोग वात कम करने में सहयोगी है। अदरक की कतरन पर काला नमक और नींबू डालकर भोजन से पहले चबाने से भोजन अच्छी तरह से पचता है।

आहार-विहार का ध्यान रोगो के निवारण में सहायक

संधि शूल को दूर करने के लिए आहार-विहार का ध्यान रखना होगा।  हींग, अजवाइन, सेंधा नमक भी वात शामक हैं साथ ही ये  अनुलोमन भी करते हैं यानि शरीर से बढ़ी हुई वायु को निकाल देते हैं । अरंड का तेल भी वात कम करता है यह आंतों में जमे हुए मल को निकाल देता है। कब्ज से मुक्ति रहना जरूरी  है, दस से पंद्रह मिली केवल पाँच दिनों तक रोज लेने से वात दूर होता है।

जीरा-अजवाइन बेहद लाभकारी

पचास ग्राम, जीरा, तीस ग्राम सौंफ, बीस ग्राम अजवाइन, दस ग्राम काला नमक और पाँच ग्राम हींग मिलकर पाउडर बना लें इस पाउडर का चौथाई चम्मच गुनगुने पानी से लेना है, पेट का भारीपन कम हो जाएगा। तेल लगाने से शरीर में वात का शमन होता है। तेल लगाकर व्यायाम करने से स्वेदन हो जाता है। उसके बाद स्नान करना है।

वात के अनुलोमन के लिए यह विज्ञान समझना जरूरी है कि शरीर में वायु का संचय न हो। यदि आपके जोड़ मजबूत हैं पर नाड़ी कमजोर है तो उसे अश्वगंधा, नारायण कल्प, त्रिफला, हरीतिकी आदि बल देंगे। दूध और घी का सेवन भी नाड़ी को मजबूत बनाता है। हींग  का लेप भी वात का शमन करता है। गरम पानी में औषधि मिलाकर स्नान करने से भी वात कम होता है। कोई डोंगा या बड़ा कटोरा लेकर उसमें गरम पानी या गरम तेल भरें और रुमाल की चार तह  बनाकर भिगोकर दर्द के स्थान पर  सेंक करना है। हिंग्वाष्टक चूर्ण, लवण भास्कर चूर्ण भी वात शामक हैं।

ध्यान व प्राणायाम से भी मिलता है लाभ

ध्यान व प्राणायाम से भी शरीर के रोग दूर होते हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम से भी नाड़ी  शुद्ध होती है। कोई भी व्यायाम करने से शरीर से दूषित हवा निकल जाती है।  यदि शरीर में दायीं तरफ दर्द है तो उस पर ध्यान केंद्रित करके वायु मुद्रा बनाकर एक मिनट के लिए  बाईं तरफ देखने से  दर्द दूर होता है। पाँच  मुद्रा विशेष हैं, प्राण मुद्रा पूरे शरीर में प्राण का संचार बढ़ा  देती है। अपान मुद्रा पेट के निचले भाग पर असर करती है। समान मुद्रा भोजन पचाने में मदद करती है। उदान मुद्रा  अस्थमा व गले रोग में मदद करती है। व्यान  मुद्रा पूरे शरीर के लिए लाभदायक है। तीन से पाँच मिनट तक ये मुद्राएं की जा सकती हैं।

संतुलित और अनुशासित दिनचर्या स्वस्थ जीवन का आधार

यदि कोई पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना चाहता है तो आवश्यक है कि दिनचर्या नियमित होनी चाहिये।  सप्ताह में एक दिन हल्का भोजन करे, हर दो घंटे पर कोई द्रव पदार्थ ले। भोजन से तुरन्त पहले और बाद में पानी न लें। सन्तुलित जीवन शैली ही जीवन में स्थिरता और मन में प्रसन्नता को बनाये रखने में सहायक हो सकती है।

(अनीता निहाली ऑर्टे ऑफ लिविंग की लेखिका है।)

डिस्क्लेमर: टाइम्स नाउ डिजिटल अतिथि लेखक है और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।