- यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव 5 जुलाई को होना है
- बीजेपी के 16 जिलाध्यक्ष निर्विरोझ निर्वाचित
- समाजवादी पार्टी ने अपने 11 जिलाध्यक्षों को हटाया
यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव पांच जुलाई को होना है।लेकिन चुनाव से पहले जो नतीजे आए हैं उससे समाजवादी पार्टी सदमें है। 16 जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर बीजेपी के उम्मीदवारों निर्विरोझ जीत दर्ज की है और उसका असर यह हुआ है कि समाजवादी पार्टी ने अपने 11 जिलाध्यक्षों को उनके पद से हटा दिया है।
सपा के जिलाध्यक्ष हुए मुअत्तल, बीजेपी ने कसा तंज
समाजवादी पार्टी ने तत्काल प्रभाव से गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्ध नगर, मऊ, बलरामपुर, श्रावस्ती, भदोही, गोंडा, ललितपुर के जिलाध्यक्षों को हटा दिया है। एसपी की इस कार्वाई पर बीजेपी के प्रदेश मंत्री डॉ चंद्रमोहन ने कुछ इस तरह तंज कसा।एक कहावत है,खेत खाए गदहा-मार खाए जोलहा,सपा ने बेचारे जिलाध्यक्षों को जोलहा बना दिया,पंचायत चुनाव में हार हुई नेतृत्व की और बर्खास्त हुए बेचारे जिलाध्यक्ष, अगर हार पर ही बर्खास्तगी होनी है तो 2017 में करारी हार पर अखिलेश यादव जी क्यों नहीं बर्ख़ास्त हुए,बड़ा अन्याय है भाई।
उत्तर प्रदेश पंचायत अध्यक्ष चुनाव में इन जिलों सपा के पक्ष में नतीजे नहीं आए हैं। पार्टी मुखिया इस बात से नाराज है कि कैसे चुनाव में सपा से चुने गए जिला पंचायत सदस्यों की ज्यादा होने के बाद भी जिला अध्यक्ष के चुनाव उनके पक्ष में नहीं जा रहे हैं। यादव ने इन सभी के ऊपर जिला पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया में अनियमितता का आरोप लगने पर हटाया है।
इसमें ज्यादातर जिले ऐसे हैं जहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन तक नहीं कर पाए। माना जा रहा है कि पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जिलाध्यक्षों की नाकामी को देखते हुए पार्टी की तरफ से ये कार्रवाई की गई है।11 में से 10 जिलाध्यक्ष ऐसे जहां नहीं हो पाया सपा प्रत्याशी का नामांकन जिन 11 जिलों के जिलाध्यक्षों को समाजवादी पार्टी ने हटाया है। उनमें से 10 जिले ऐसे हैं, जहां सपा के उम्मीदवार पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन भी नहीं कर पाए। जिसमें गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, आगरा, ललितपुर, झांसी, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, मऊ, गोरखपुर शामिल हैं। माना जा रहा है कि इसमें स्थानीय जिलाध्यक्षों की भी कमी है। जिसकी वजह से सपा प्रत्याशी नामांकन नहीं कर पाए। यही वजह है कि समाजवादी के प्रदेश अध्यक्ष ने इन जिलाध्यक्षों को पद से हटा दिया है।
इससे पहले अखिलेष यादव ने ट्वीट के माध्यम से लिखा था कि गोरखपुर व अन्य जगह जिस तरह भाजपा सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है, वो हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है। भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी।उधर राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार 17 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के एक ही नामांकन हुए हैं या वैध पाए गए हैं।
क्या कहते हैं जानकार
दरअसल समाजवादी पार्टी के नेता इस बात का दावा कर रहे थे जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख पद के लिए होने वाले चुनाव विधानसभा चुनाव की पटकथा लिखेंगे। लेकिन जिस तरह से बीजेपी के 16 जिला पंचायत अध्यक्षों पर जीत के बाद समाजवादी पार्टी ने फैसला किया है उसे एक तरह की निराशा बताई जा रही है। जानकारों का कहना है कि वैसे तो इस चुनाव की सीधे तौर पर जनभावना के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। लेकिन कुछ चुनाव ऐसे होते हैं जिसके लिए टाइमिंग का मतलब होता है। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले जिला और ब्लॉक प्रमुख चुनाव के नतीजों को पार्टियां अपने अरने तरीके से कैश कराने की कोशिश करेंगी। समाजवादी पार्टी की तरफ से जिस तरह से फैसला किया गया है निश्चित तौर पर बीजेपी को अपने लिए बड़ी जीत नजर आ रही होगी।