- राज्य में 11 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की एक डोज लग चुकी है।
- कोरोना की लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय स्तर की तुलना में आधी रही।
- रिपोर्ट के अनुसार 12 अप्रैल को 380 मिट्रिक टन रोजाना ऑक्सीजन की मांग थी। जो कि 25 अप्रैल को ढाई गुना बढ़कर 840 मिट्रिक टन हो गई।
नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर ने उत्तर प्रदेश में कोरोना की लहर के दौरान राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की है। अध्ययन के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जिस तरह कदम उठाए गए, उससे 20 करोड़ आबादी वाले राज्य में कोरोना के संक्रमण को रोकना आसान हो गया। प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में IIT कानपुर की टीम ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपनाए गए "यूपी मॉडल" का एक व्यापक अध्ययन किया। इसके तहत राज्य सरकार ने कोविड-उपयुक्त प्रोटोकॉल के साथ आर्थिक गतिविधियों को जारी रखा। साथ ही टेस्टिंग, वैक्सीनेशन जैसे कदमों से स्थिति को गंभीर नहीं होने दिया ।
टेस्टिंग, ऑक्सीजन प्रबंधन और वैक्सीनेशन
रिपोर्ट के अनुसार 12 अप्रैल को 380 मिट्रिक टन रोजाना ऑक्सीजन की मांग थी। जो कि 25 अप्रैल को ढाई गुना बढ़कर 840 मिट्रिक टन हो गई। उत्तर प्रदेश ऐसा पहला राज्य था जिसने भारतीय वायुसेना की मदद से खाली टैंकर लिफ्ट कराए। इस दौरान 57 ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाई गई और सख्त ऑडिट की वजह से रोजाना 30 मिट्रिक टन ऑक्सीजन बचाई गई।
लगातार टेस्टिंग का नतीजा था कि राज्य में कोरोना की दूसरी लहर आशंकाओं के मुकाबले जैसी गंभीर नहीं हो पाई। राज्य में 11 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की एक डोज लग चुकी है। इसके अलावा राज्य में कोरोना के मामलों में कमी आने के बावजू व्यापक टेस्टिंग चल रही है । कोरोना की अन्य लहर की निगरानी के के लिए 70,000 निगरानी समितियां सक्रिय की गई हैं। वहीं 238 PSA प्लांट के चालू होने के कारण 87,174 ऑक्सीजन बेड हो गए हैं। इसके अलावा सभी 549 PSA प्लांट शुरू होने के बाद 1.5 लाख से ज्यादा ऑक्सीजन बेड हो जाएंगे। जो भारत के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा होगा। तीसरी लहर को देखते हुए बच्चों के लिए 6700 आईसीयू बेड तैयार किए जा चुके हैं।
बेरोजगारी नियंत्रण में रही
रिपोर्ट के अनुसार दूसरी लहर के दौरान प्रवासी मजदूरों और गरीब तबके का खास तौर से ध्यान दिया गया। प्रवासी श्रमिकों की वापसी के लिए सरकार ने फ्री-बस सेवा चलाई गई। भारतीय रेलवे के साथ साझेदारी कर श्रमिक ट्रेन, बीमार मजदूरों के लिए एंबुलेंस सेवा चलाई गई। इसी तरह श्रमिकों के खाते में तत्काल 1000 रुपये जमा किए गए। इसके अलावा 1000 रुपये डीबीटी के जरिए गरीब तबके के खाते में जमा किए गए। लौटे श्रमिकों को रोजगार के अवसर देने के लिए स्किल मैपिंग की गई। मनरेगा स्कीम के जरिए रोजगार देना और स्थानीय स्तर पर जॉब कार्ड का निर्माण कर, रोजगार की व्यवस्था करने जैसे कदम उठाए गए। जिसका असर यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय स्तर की तुलना में आधी रही।