- यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी
- शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ साथ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मिले
- दिल्ली में योगी की वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात पर विपक्ष का तंज, चुनाव के समय ऐसा ही होता है
यूपी में बीजेपी सरकार और संगठन का रूप और रंग अब आगे कैसा होगा वो भविष्य के गर्त में छिपा है। लेकिन जिस तरह से मई के अंतिम हफ्ते से लेकर अब तक उथलपुथल है वो इस बात की तरफ इशारा कर रही है सब कुछ ठीक नहीं है। सीएम योगी आदित्यनाथ गुरुवार को दिल्ली पहुंचे थे और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। उसके बाद शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी से करीब सवा घंटे बातचीत की और उसके बाद बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा से भी मिले। ये मुलाकातें बीजेपी की नजर में सामान्य शिष्टाचार मीटिंग हो सकती है लेकिन विपक्षी दल चुटकी ले रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ सुहेलदेव बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने क्या कुछ कहा वो समझने के लायक है।
'बीजेपी अब डूबती नाव'
सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कहते हैं कि अब जब मौजूदा योगी सरकार हर मोर्चे पर नाकाम हो चुकी है तो लोगों को ध्यान बंटाने की कोशिश कर रही है, बीजेपी इस समय डूबती नाव है और उसमें कौन सवार होगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी की खासियत रही है कि वो सिर्फ और सिर्फ अपने हित के लिए लोगों का इस्तेमाल करती है। आज जो हालात बने हैं इसके पीछे कोई नई बात नहीं है. यह सब तो होना ही था। जहां तक उनकी बात है वो बीजेपी का हिस्सा कभी नहीं बनेंगे।
'बंदरबांट में उलझी बीजेपी'
उत्तर प्रदेश का ‘ठहरा रथ’ भला कैसे हो गतिमान पहिया धँसा है यूपी में पर दिल्ली के हाथ लगाम।इधर बेकारी-बेरोज़गारी रिकार्ड तोड़ रही है, उधर महंगाई कमर तोड़ रही है। न मनरेगा में काम है, न स्किल मैपिंग का कहीं अता-पता है और न ही इंवेस्टमेंट मीट के निवेश का। व्यापार, कारोबार, दुकानदारी, कारीगरी सब ठप्प है। बंदरबाँट में उलझी भाजपा सरकार से जनता को कोई उम्मीद भी नहीं है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि अगर आप योगी आदित्यनाथ की मुलाकात को ध्यान से देखें तो उसमें उनके राष्ट्रपति से मिलने का कार्यक्रम है। बीजेपी इस तरह की मीटिंग के जरिए संदेश देना चाहती है कि योगी आदित्यनाथ को सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। कोरोना की दूसरी लहर के बीच यूपी सरकार ने जिस तरह से काम किया है वो आलाकमान तक आधिकारिक तौर पर पहुंचाने की तरीका है।
इसके साथ ही अगर गुरुवार को अमित शाह के साथ जिस तरह से अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद मिले उसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि बीजेपी के अंदर किसी तरह की आंतरिक समस्या की नतीजा योगी जी का दौरा नहीं है। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं लिहाजा जमीन पर गठबंधन की ताकत को परखने की कोशिश है।
यही नहीं अगर बात अखिलेश याद कि करें तो अगर वो इस विषय पर कुछ नहीं बोलते तो आखिर विपक्ष धर्म का क्या मतलब रह जाता है आखिरकार उनको भी अपने मतदाताओं को संदेश देना है कि बीजेपी में जो कुछ हो रहा है बेशक उनका आंतरिक मामला है, लेकिन एक जिम्मेदार विपक्ष आखिर चुप कैसे रह सकता है। इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर ने जब बीजेपी के साथ सामाजिक न्याय की सिरफारिशों को लागू करने के मुद्दे पर नाता तोड़ा तो उन्हें यह मौका मिला कि वो कह सकें कि डेढ़ साल पहले उनके साथ अन्याय हुआ था।