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UP में 356 गो तस्कर माफिया की पहचान, 150 से ज्यादा अवैध स्लाटर हाउस बंद

Updated Sep 14, 2021 | 20:30 IST

UP Government: पिछले साढ़े चार साल में 319 गो तस्कर माफिया को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही दो आरोपियों की कुर्की और 14 पर रासुका लगाया गया है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
उत्तर प्रदेश सरकार की अवैध स्लाटर हाउस पर सख्त कार्रवाई
मुख्य बातें
  • प्रदेश में मानकों के आधार पर 35 स्लाटर हाउस चल रहे हैं।
  • 68 गो तस्कर माफिया की गैंगेस्टर एक्ट के तहत 18 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त की गई है।
  • स्लाटर हाउस के संचालन में आ रही दिक्कतों को देखते हुए 2018 में यूपी सरकार ने कानूनी संशोधन किया था।

लखनऊ: उत्तर  प्रदेश सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में गोसंरक्षण अभियान के तहत 150 से ज्यादा अवैध स्लाटर हाउस को बंद कराया गया है। इसके अलावा सरकार ने 356 गौ तस्कर माफिया की पहचान कर 1823 के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। साथ  ही प्रदेश में पहली बार 68 गो तस्कर माफिया की गैंगेस्टर एक्ट के तहत 18 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त की गई है।  नगर विकास विभाग के अनुसार इस दौरान प्रदेश के विभिन्न जिलों में मानकों का उल्लंघन कर रहे 150 से अधिक स्लाटर हाउस को बंद कराया गया है। इस वक्त प्रदेश में मानकों के आधार पर 35 स्लाटर हाउस चल रहे हैं। इस बात का दावा उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है।

 बड़े पैमाने पर कार्यवाही

उत्तर प्रदेश सरकार से मिली जानकारी के अनुसार जुलाई तक पिछले साढ़े चार साल में 319 गो तस्कर माफिया को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही दो आरोपियों की कुर्की और 14 पर रासुका लगाया गया है। इसके अलावा 280 आरोपियों पर गैंगेस्टर, 114 पर गुंडा एक्ट और 156 आरोपियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई है। ग्राम विकास और पशुधन विभाग के अनुसार प्रदेश में जुलाई माह तक 43,168 से अधिक लोगों को 83,203 से अधिक गोवंश के जानवरों को दिए गए हैं। प्रदेश में कुल 5278 स्थायी गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं, जिसमें करीब 5,86,793 गोवंश के जानवर मौजूद हैं।

सरकार ने बदला कानून 

उत्तर प्रदेश सरकार ने स्लाटर हाउस के संचालन को लेकर आ रही दिक्कतों को देखते हुए 2018 में कानूनी संशोधन किया था। जिसके जरिए नगर निकायों को किसी भी प्रकार के स्लाटर हाउस के संचालन और स्थापना का अधिकार खत्म कर दिया गया है।अब निजी रूप से मानकों के आधार पर कोई भी स्लाटर हाउस संचालित कर सकता है, लेकिन अनुमति देने का फैसला नगर विकास विभाग की राज्य स्तरीय कमेटी करती है।

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