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योगी आदित्यनाथ- केशव प्रसाद मौर्य के बीच सियासी लंच, क्या है मतलब

Updated Jun 22, 2021 | 15:12 IST

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जब लंच के लिए अपने डिप्टी यानी केशव प्रसाद मौर्या के घर पहुंचे तो सियासी हलचल तेज हो गई।

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सीएम योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद से मिलने उनके घर पहुंचे
मुख्य बातें
  • यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे
  • लंच में दोनों के साथ साथ संघ के कृष्णगोपाल भी मौजूद
  • सीएम चेहरे पर सियासी तूफान अभी थमा नहीं

करीब पांच साल बाद योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य के घर गए। मंगलवार को दोपहर लंच के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम के केशव प्रसाद मौर्या के घर पहुंचे। लंच में इन दोनों बड़ी शख्सियतों के साथ संघ के कृष्णगोपाल भी शामिल हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ महज यह लंच है या उससे आगे कुछ और छिपा है। बता दें कि यूपी बीजेपी में सियासी रार जो मची हुई थी वो फिलहाल समाप्त होती नजर आ रही है लेकिन सिसासी चिंगारी कब शोलों में भड़क जाए इसके बारे में कोई पुख्ता तौर पर बोलने की स्थिति में नहीं होता।

सीएम चेहरे पर तनातनी बरकरार
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन सीएम का चेहरा कौन होगा इसे लेकर कशमकश जारी है। एक टीवी साक्षात्कार में जब राजनाथ सिंह से इस विषय पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ही सीएम के चेहरा होंगे। लेकिन उनके बयान से कुछ दिन पहले जब यही सवाल केशव प्रसाद मौर्या से पूछा गया तो उनका जवाब गोलमोल था। उन्होंने कहा कि बीजेपी कोई प्राइवेट कंपनी लिमिटेड नहीं जिसमें कुछ लोग फैसला करते हैं। इसके साथ ही हाल ही में यूपी सरकार में एक और मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सीएम कौन होगा उसका फैसला तो चुनाव बाद ही होगा। 

2017 का नतीजा सामने है
जानकार कहते हैं कि अगर आप 2017 के चुनाव को देखें तो केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। अघोषित तौर पर बीजेपी पिछड़े समाज को संदेश देती रही है कि इस दफा यूपी की कमान आपके समाज से ही होगा। लेकिन जब सीएम चेहरे पर अंतिम फैसला लिया जाना था तो उस रेस में केशव प्रसाद मौर्या पिछड़ गए और उन्हें डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा।लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से सियासी बदलाव हुए उस हालात में केशव प्रसाद मौर्या ने जब कहा कि बीजेपी किसी एक शख्स की जागीर नहीं तो यह संदेश देने की कोशिश की इस बार वो योगी आदित्यनाथ के नाम पर सहमत नहीं होंगे। 

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