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झारखंड: जानिए कैसे कोविड से 'अपनों' को खो चुके परिवारों की मददगार बनीं 'सखी बहनें'

Updated Aug 13, 2021 | 20:35 IST

स्वयं सहायता समूहों में काम करने वाली महिलाओं को 'सखी' कहा जाता है। झारखंड में कोविड के इस मुश्किल दौर में ये लोगों की सबसे अधिक मदद कर रही हैं।

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कोविड:'अपनों' को खो चुके परिवारों की मददगार बनीं 'सखी बहनें'

रांची: झारखंड के जामताड़ा जिले के फतेहपुर प्रखंड की खैरबानी गांव की कल्पना हंसदा का 2021 के फरवरी माह में निधन हो गया था। कल्पना सखी मंडल की सदस्य थी और घर की एक मात्र कमाने वाली थी। उनके पति का निधन पहले ही हो चुका था। ऐसे में कल्पना के परिवार को प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) का सहारा मिला। दरअसल, उनकी मदद करने वाले स्वयं सहायता समूहों में काम करने वाली महिलाओं को 'सखी' कहा जाता है। ऐसे में मुसीबत के समय उनकी सखी ही काम आ रही है।

इस तरह काम करती हैं समूह की महिलाएं

कल्पना ऐसी एकमात्र नहीं जिन्हें स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा सहायता मिल हो। राज्य में कई ऐसे परिवार है, जिन्हें ये महिलाएं आगे बढकर मदद कर रही हैं।दरअसल, समूह से जुड़कर कल्पना ने समूह से जुड़कर कल्पना ने पीएमजेजेबीवाई लिया था। उनकी मृत्यु के एक माह के अंदर, 'बैंक सखी' समीरन बीबी की मदद से झारखण्ड राज्य ग्रामीण बैंक से, बीमा के अंतर्गत, दो लाख रूपए कल्पना के परिवार को मिल गए। इस आर्थिक मदद से कल्पना के परिवार को दु:ख की घडी में मजबूत बल मिला। झारखंड में ऐसे कई परिवार हैं जो स्वयं सहायता समूह से बीमा का लाभ ले चुकी हैं।

झारखंड में कोविड प्रभावित परिवारों की मदद के लिए सर्वेक्षण शुरू किया गया है। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के तहत स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं भी ऐसे प्रभवित परिवारों को बीमा दावों का निपटारा करने और उनकी राषि प्राप्त करने में मदद कर रही हैं।जेएसएलपीएस के एक अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण विकास विभाग द्वारा कोविड-19 से मरने वाले लोगों की पहचान करने के लिए गांवों में डोर-टू-डोर सर्वेक्षण कर रहा है, जिससे ऐसे प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत प्रदान की जा सके।

इस तरह की मदद

अधिकारियों ने कहा कि इस बीमारी से मरने वाले 3,750 लोगों की पहचान की जा चुकी है, जो परिवार के एकमात्र कमाउ सदस्य थे। स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाएं ऐसे परिवारों के बीमा दावों का निपटारा करने और उनकी राशि प्राप्त करने में मदद कर रही हैं। जेएसएलपीएस के सीईओ आदित्य रंजन ने कहा, 'ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे परिवार जिनकी कोविड -19 के कारण किसी भी सदस्य की मौत हो गई, उनकी पहचान एसएचजी सदस्यों द्वारा की जा रही है, जिससे उन्हें राज्य सरकार की विभिन्न आजीविका योजनाओं के माध्यम से जोड़ा जा सके।'

उन्होंने कहा कि एसएचजी महिलाएं मृतक व्यक्तियों का डाटा एकत्र कर रही हैं और उनके परिवारों को उनके नाम पर बीमा दावों का निपटान करने में मदद कर रही हैं। उन्होंने कहा कि 1 अप्रैल के बाद मरने वालों की पहचान के लिए सर्वेक्षण शुरू किया गया है, जिससे पीएमजेजेबीवाई के तहत आश्रितों के लिए बैंकों में आवश्यक कागजी कार्रवाई पूरी की जा सके।

गरीब परिवारों को मदद

 उन्होंने कहा 'बैंकिंग सखी जो ऐसे परिवारों की मदद करेगी, उन्हें प्रत्येक मामले के लिए 1,000 रुपये दिए जाएंगे। पिछले साल महामारी फैलने के बाद पिछले एक साल के दौरान प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के तहत 20 लाख से अधिक लोगों को यह लाभ पहुंचाया गया था।' जेएसएलपीएस अधिकारियों का मानना है कि यह सर्वे प्रभावित परिवारों के लिए काफी मददगार साबित हुआ है।

अधिकारियों ने बताया कि दुमका के रतनपुर गांव निवासी नरेश कुमार गुप्ता अपने परिवार के लिए एकमात्र कमाउ सदस्य थे। अप्रैल में उनकी मृत्यु हो गई, जिससे परिवार भुखमरी के कगार पर आ गया। लेकिन, स्वयं सहायता समूह के सदस्य आगे आए और उनकी पत्नी को उनके पति के बीमा दावों को निपटाने में मदद की। उसे 2 लाख रुपये मिले जिससे संकट के समय में परिवार को बहुत मदद मिली।