नई दिल्ली: बिहार की राजनीति में 1990 तक कमोबेश कांग्रेस की सरकार रही। आजादी के बाद देश की राजनीति में कई बड़े परिवर्तन हुए लेकिन बिहार इस तरह के बदलावों से एक तरह से अछूता रहा। 1990 में लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने। सत्ता में लालू के आने के बाद बिहार में एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत हुई। बिहार से शुरू हुई समाजिक न्याय और मंडल-कमंडल की राजनीति का असर पूरे देश में दिखाई दिया। इस राजनीति ने राष्ट्रीय स्तर के विमर्शों को बदल दिया। मंडल की राजनीति के साथ बिहार के चुनावी समीकरण एवं रणनीति में बदलाव हुआ।
इसी दौर में राज्य में क्षेत्रीय दल उभरे और अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की। राजनीति में अब तक उपेक्षित रहे अन्य पिछड़ा वर्ग, दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय को जगह मिली। मंडल की राजनीति ने एक तरह से दशकों से सत्ता में काबिज रहने वाली कांग्रेस को हाशिए पर धकेलना शुरू किया। यहीं से राज्य में कांग्रेस के पतन की शुरुआत भी हो गई। मंडल के बाद की राजनीति में जनता दल ने सीधे तौर पर कांग्रेस को चुनौती देना शुरू किया। धीरे-धीरे आगे चलकर जनता दल से निकले राष्टीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) राज्य के प्रमुख क्षेत्रीय दल बन गए। विगत दशकों में इन दोनों दलों की सोशल इंजीनियरिंग ने राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा को अपने बूते सरकार बनाने का कभी मौका नहीं दिया। ये दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां राजद और जद-यू के सहारे सत्ता तक पहुंचती रही हैं।
1996 में बना जेडीयू ने भाजपा का मजबूत गठबंधन
साल 1996 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू ने भाजपा के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाया। बीते तीन दशकों में राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, सीपीएम, सीपीआई और अन्य क्षेत्रीय दल राज्य के चुनावी परिदृश्य थोड़ा बहुत बदलाव करते रहे हैं। फरवीर 2005 में लोजपा ने किसी पार्टी का समर्थन करने से इंकार कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि राज्य में अक्टूबर 2005 में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार को दूसरी बार राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।
2015 में नीतीश बीजेपी से हो गए अलग
मंडल के बाद बिहार की राजनीति में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। साल 2015 नीतीश कुमार भाजपा से अलग होकर राजद के साथ महागठबंधन बनाया और जीत हासिल की लेकिन 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए और भाजपा के समर्थन से एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। खास बात यह है कि लालू और नीतीश का महागठबंधन स्वाभाविक नहीं था। राजनीति में दोनों एक दूसरे के कट्टर प्रतिस्पर्धी रहे हैं लेकिन सत्ता से भाजपा को दूर रखने के लक्ष्य ने दोनों को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया।
2015 में फिर सीएम बने नीतीश कुमार
राजद के नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हुए। भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई ने नीतीश सरकार में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव एवं राजद के अन्य नेताओं के यहां छापे मारे। महागठबंधन से अलग होने के पीछे नीतीश ने कहा कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन किया लेकिन नीतीश ने उसी भाजपा से गठबंधन किया जिसकी आलोचना उन्होंने 2015 के चुनावों में की थी। एक तरह से 2015 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ जनादेश महागठबंधन को मिला था लेकिन इस जनादेश के खिलाफ जाकर नीतीश एक बार फिर भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने।
लालू यादव ने 15 साल तक एकछत्र राज्य किया
बिहार की राजनीति की समझने के लिए वहां की सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य को भी समझना जरूरी है। पिछले कुछ दशकों में राज्य में हुए सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों ने चुनावी राजनीति के स्वरूप को बदल दिया। पिछड़ों, दलित और मुस्लिमों का राजनीति में दबदबा बढ़ने से जाति की राजनीति ने जोर पकड़ा। जाति के समीकरण (एमवाई) की बदौलत ही लालू यादव ने राज्य में 15 सालों तक एकछत्र राज किया। आगे चलकर नीतीश कुमार ने इस समीकरण की काट निकाली। उन्होंने अन्य पिछड़ी जातियों एवं महादलित को साथ मिलकर लालू के समीकरण का विकल्प तैयार किया। भाजपा का साथ मिलने से उनकी अगड़ी जातियों तक पहुंच बनी। इस तरह भाजपा और जद-यू के जातीय समीकरण लालू के एम-वाई समीकरण पर भारी पड़ गया।
1990 के दशक में बिहार में क्षेत्रीय दल उभरे
कुल मिलाकर 1990 का दशक बिहार में क्षेत्रीय दलों के उभार का समय है। यहीं से राज्य की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का दबदबा शुरू हुआ जो आज भी कायम है। 1990 में जनता दल की विजय ने राज्य में कांग्रेस के शासन का अंत कर दिया। इस हार के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई। 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता दल एक बार फिर विजयी हुआ। लालू यादव पूर्ण बहुमत के साथ जीतकर सत्ता में आए। इस दौर में भाजपा का दायरा और प्रभाव दोनों सीमित था। मंडल के बाद 1995 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव ओबीसी बनाम ओबीसी पर केंद्रित था। 1995 के बाद भाजपा राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे तैयार करती रही और आगे चलकर नीतीश कुमार का साथ मिलने के बाद उसके जनाधार में तेजी से विस्तार हुआ।