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बिहार में कभी चला 'साहब, बीवी और गैंगस्टर' का दौर, शाहबुद्दीन के खौफ से कांपते थे लोग 

श्वेता सिंह | सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर
Updated Sep 24, 2020 | 10:15 IST

Bihar Polls News: एलईडी बल्ब के जमाने में कहां तक थमेगी लालटेन की रोशनी। क्या सच में अब बुझने वाली है लालटेन या दोबारा से इसे जलाए रखने में कामयाब होगी 'साहब, बीवी और गैंगस्टर की जोड़ी'।  

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विस चुनाव होने हैं।
मुख्य बातें
  • लगातार 15 साल तक बिहार पर शासन किया लालू प्रसाद यादव ने
  • लालू के 'जंगलराज' का गुंडा शहाबुद्दीन ही वोट बैंक की चाबी था
  • शाहबुद्दीन के खिलाफ कोई आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करता था

बिहार की राजनीति में लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पैठ बनाए रखना कोई मामूली बात नहीं थी। राष्ट्रीय जनता दल ने जिस तरह से सत्ता संभाले रखी और बिहार की जनता में अपनी धाक जमाए रखी, वो सच में राजनीति में काबिले तारीफ है। इस दौर में साहब (लालू प्रसाद यादव), बीवी (राबड़ी देवी) और गैंगस्टर (शाहबुद्दीन) की तिकड़ी ने राजद को एक ऐसी ताकत बना दिया जिसे चुनौती देना किसी के लिए भी आसान काम नहीं था। इस तिकड़ी का दौर बीत चुका है लेकिन उस दौर को लोग अभी भी भूल नहीं पाए हैं। सवाल है कि नए कलेवर में खुद को पेश कर रहे राजद के प्रति बिहार की जनता का झुकाव एक बार होगा कि नहीं।  

जब लालू प्रसाद के 'जंगल राज' में बोलती थी शाहबुद्दीन की तूती  
बिहार की बर्बादी और उसके पिछड़ेपन की जब भी कहानी लिखी जाएगी, लालू प्रसाद यादव के 'जंगल राज' की चर्चा सबसे पहले होगी। लालू प्रसाद यादव के इस 'जंगल राज' में शाहबुद्दीन का आतंक चरम पर था। शाहबुद्दीन और उसके गुर्गों पर कानून का कोई भय नहीं था। वे खुले तौर पर अपनी मनमानी करते थे। क्या मजाल था कि सिवान जिले के लोग शहाबुद्दीन के खिलाफ चले जाएं। शहाबुद्दीन को लालू का आशीर्वाद प्राप्त था और लालू को इसके बदले चुनाव में वोट मिलते थे। शहाबुद्दीन लालू को अपना सबकुछ मानता था, तो लालू उसे अपनी राजनीतिक नौके का खेवय्या मानते थे। व्यापारियों के अपहरण, धन उगाही, हत्या जैसी बातें तो इस अपराधी के लिए आम थीं। लालू की छत्रछाया में इसने न सिर्फ सिवान बल्कि पूरे बिहार में लोगों का जीना दूभर कर दिया।  

'साहब, बीवी और गैंगस्टर' की तिकड़ी का खूब चला राज  
लालू प्रसाद यादव दिमाग के धनी हैं। चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने के बाद उन्होंने एक तरफ अपनी पत्नी को बिहार की सत्ता की चाबी दे दी। लालू के जेल जाने के बाद भी इस गठजोड़ का दबदबा राजनीति एवं राज्य में कमजोर नहीं पड़ा। कहने के लिए सत्ता राबड़ी के हाथ में थी, लेकिन उसके पीछे का पूरा दिमाग तो लालू का होता था। विरोधी खेमे के सामने अपनी पत्नी को ढाल बनाकर इस्तेमाल किया और साथ ही देश में बाकी राज्यों को ये दिखाने की कोशिश की कि प्रदेश की सत्ता महिला के हाथ में देकर वो नई मिशाल कायम कर रहे हैं। महिलाओं के उत्थान के लिए उनकी पार्टी बहुत कुछ कर रही है। इस तरह के छलावे और झांसे में राजद ने बिहारियों के कई साल यूं ही बर्बाद कर दिए। इस तिकड़ी का कोई तोड़ नहीं था। हर पार्टी में इसका काट खोजा जा रहा था, लेकिन न तो किसी के पास राबड़ी जैसी अनुगामिनी थी और न ही लालू के लिए किसी भी हद तक जाने वाला शाहबुद्दीन था। 

क्या जेल की कालकोठरी तक सीमित रह जाएगी लालू की राजनीति? 
बिहार में सबसे अधिक समय तक सत्ता का स्वाद चखने वाले लालू प्रसाद यादव के लिए अब समय बदल चुका है। परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है। इसी बदलाव को बिहार की जनता ने भी स्वीकार किया। फिलहाल लालू प्रसाद यादव जेल में समय बीता रहे हैं। जेल की सलाखों के पीछे से वो राजद को नई राह देने की कोशिश में लगे हैं। बिहार में अपराध एवं भय का पर्याय बनने वाला शाहबुद्दीन भी जेल में बंद हैं। शाहबुद्दीन को तो पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए भी पेरोल नहीं दिया गया।  

शाहबुद्दीन का गढ़ था सिवान    
सिवान की एक-एक ईंट शाहबुद्दीन से थर-थर कांपती थी। चाहकर भी वहां की जनता इस अपराधी के खिलाफ अपने स्वयं के मत का मतदान नहीं कर पाती थी। सिवान हमेशा ही अजेय के रूप में राजद के लिए साबित हुआ। 1980 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला ये अपराधी महज कुछ साल बाद ही निर्दलीय चुनाव लड़ गया। फिर लालू प्रसाद यादव के साथ हो चला और सालों तक विधायक बना रहा। विधायक से सांसद और फिर पूरे राज्य में अपना तांडव मचाया। विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का, राजद के लिए सिवान हमेशा ही जीत का ताज साबित होता, लेकिन कुछ समय से खेल पलट गया है। 'साहब बीवी और गैंगस्टर' की इस तिकड़ी का जादू पिछले कुछ समय से फीका पड़ गया है। 

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