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दूसरे और तीसरे चरण में बदली हवा और 122 के जादुई आंकड़े को पार कर गया एनडीए

Updated Nov 11, 2020 | 10:22 IST

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखने के बाद पता चलता है कि एनडीए के लिए दूसरे और तीसरे चरण का चुनाव संजीवनी साबित हुई।

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बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने मारी बाजी
मुख्य बातें
  • बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के खाते में 125 सीट
  • एनडीए में 74 सीट के साथ बीजेपी बड़ी पार्टी
  • जेडीयू का आंकड़ा घटकर पचास से कम हुआ

पटना। बिहार विधानसभा के चुनाव में इस दफा 15 साल का विकास और 15 साल का जंगलराज चर्चा में रहा। इससे इतर तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया तो बीजेपी ने उसके बदले 19 लाख रोजगार सृजन का वादा किया और बताने की कोशिश की तेजस्वी यादव जनता को बरगलाने का काम कर रहे हैं। अगर चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो एनडीए  बहुमत को पाने में कामयाब रही है और महागठबंधन पिछड़ गया। ऐसे में कई तरह के सवाल जेहन में आते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बाजी पलट गई।

एनडीए के पक्ष में साइलेंट मतदान
तेजस्वी यादव की सभाओं में युवाओं की जबरदस्त भीड़ जुटती थी लेकिन क्या वो भीड़ वोट में नहीं पाई। क्या एनडीए के लिए बिहार का मतदाता चुपचाप दिमाग बना चुका था। यह सब सवाल हैं जिसका जवाब सिलिसिलेवार देंगे। अगर एनडीए के आंकड़े की बात करें तो निश्चित तौर पर वो बहुमत हासिल कर चुका है। लेकिन बिहार की राजनीति में एनडीए की तरफ से जीत का हीरो जेडीयू नहीं बल्कि बीजेपी है। जेडीयू पचास के अंदर सिमट चुकी है तो बीजेपी के खाते में 74 सीटें आई हैं, इसके साथ वीआईपी और हम को 10 से कम सीटें आई हैं। 

सीमांचल में वोटों के बिखराव से एनडीए को फायदा
अगर चुनावी नतीजों को देखें तो तीसरे चरण में एआईएमआईएम को पांच सीट मिली है और ये वो सीटें हैं जहां पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद औसतन 40 फीसद के ऊपर है। आरजेडी को यकीन था कि परंपरागत तौर पर उसके एमवाई समीकरण काम करेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नतीजों से साफ है कि मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद या तो ओवैसी की पार्टी रही है या वोटों में बिखराव हुआ जिसका फायदा बीजेपी को मिला है। बीजेपी की बात इसलिए हो रही है क्योंकि सीमांचल की ज्यादातर सीटें बीजेपी के खाते में थीं। 

महिला मतदाताओं ने नीतीश में जताया भरोसा
अब बात करते हैं कि एनडीए के प्रति महिलाओं में कैसी प्रतिक्रिया रही। दरअसल इस मुद्दे पर जानकार दिलचस्प टिप्पणी देते हैं, जानकार बताते हैं कि अगर महिलाओं ने एनडीए के पक्ष में मतदान न किया होता तो हालात कुछ और होते। खासतौर पर नीतीश कुमार की पार्टी के लिए जितनी सीटें आई हैं उतनी भी हासिल करनी हो जाती है। इस चुनाव में शराबबंदी के मुद्दे को चिराग पासवान और तेजस्वी यादव दोनों ने उठाया कि किस तरह से शराब की होम डिलीवरी हो रही है। लेकिन जमीन पर सामान्य तौर पर शराब सर्वसुलभ नहीं है। शराबबंदी की वजह से घरेलू हिंसा में कमी आई और वो चीज महिलाओं के मन मष्तिष्क में अंकित था। 
 

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