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Chanakya Niti: गृहस्थ जीवन को स्‍वर्ग बना देती हैं ये चार चीजें, चाणक्‍य ने बताए दुख दूर करने के खास उपाय

Updated Sep 13, 2022 | 06:08 IST

Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य कहते है कि मनुष्‍य जीवन में सुख और दुख कर्म के फल होते हैं, इसे बदला नहीं जा सकता। हालांकि कुछ उपायों को अपना कर दुख को खम कर जीवन को जरूर खुशहाल बनाया जा सकता है। आचार्य ने सुखी जीवन के मंत्र बताते हुए अपने विचार को श्लोक के जरिए साझा किया है।

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तस्वीर साभार:&nbspRepresentative Image
गृहस्थ जीवन को स्‍वर्ग बनाने के चार उपाय
मुख्य बातें
  • शांत मन बड़ी से बड़ी समस्‍या से भी मनुष्‍य को बाहर निकालता है
  • मन में दया की भावना हमेशा मनुष्‍य को गलत काम करने से रोकती है
  • मनुष्‍य में संतुष्टि या संतोष का गुण ही उसका सबसे बड़ा धन और शक्ति है

Chanakya Niti in Hindi: मनुष्य जीवन सुख-दुख और उतार-चढ़ाव से भरा होता है। चाहे सुख हो या दुख ज्‍यादा दिनों तक स्थिर नहीं रहता है। अगर अभी दुख है तो कुछ समय के बाद खुशियों का आगमन भी होगा, वहीं खुशी है तो दुख के लिए भी तैयार रहना चाहिए। आचार्य चाणक्य अपने नीति शास्‍त्र में कहा है कि मनुष्‍य जीवन में सुख और दुख कर्म के फल होते हैं, इसे बदला नहीं जा सकता। हालांकि कुछ उपायों को अपना कर दुख को खम कर जीवन को जरूर खुशहाल बनाया जा सकता है। आचार्य ने सुखी जीवन के मंत्र बताते हुए अपने विचार को श्लोक के जरिए साझा किया है। चाणक्य कहते हैं जीवन का सबसे बड़ा सुख चार चीजों में छिपा है। इन चारों चीजों को जिसने अपने जीवन में अपना लिया उसका जीवन सुखमय हो जाता है।

क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।

नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥

शांति

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि आप कितनी भी बड़ी से बड़ी समस्‍या से क्‍यों न घिरे हो, लेकिन उसका हल हमेशा शांति से ही निकाला जा सकता है। चाणक्य के अनुसार शांति से बड़ा कोई तप नहीं है। लोगों के पास कई सुबिधाएं होने के बाद भी उनका मन अशांत रहता है, जिस पर वे काबू नही पा सकते है, ऐसे में वे शांत वातावरण की तलाश करते हैं। इसलिए जब भी आपका मन अशांत हो, तो शांत रहकर अपने मन पर काबू पा सकते हैं।

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दया

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि अगर आपमें दया की भावना है, तो आप गलत काम नही कर सकते हैं। ना ही किसी के साथ अन्‍याय कर सकते हैं। क्‍योंकि दया हमेशा अनिष्‍ट काम करने से रोकती है। जिनमें दया भाव होता है, उनका मन पाप करने कि तरफ नही बढ़ता है। साथ ही वे किसी जरूरतमंद की मदद भी कर सकते हैं।

संतुष्टि

आचार्य के अनुसार किसी व्‍यक्ति में संतुष्टि या संतोष का गुण ही उसका सबसे बड़ा धन और शक्ति है। आचार्य ने संतुष्ट जीवन को सफल जीवन से भी बड़ा माना है। क्योंकि सफलता का आंकलन हमेशा दूसरे ही करते हैं जबकि संतुष्टि स्वयं के मन और मस्तिष्क से महसूस की जाती है। जो व्‍यक्ति अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पा लेता है उसके लिए यह धरती ही स्‍वर्ग बन जाती है।

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लालच

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लालच एक ऐसी बीमारी है, जिसका अगर समय पर इलाज नहीं किया जाए तो यह जीवनभर परेशान करता है। क्‍योंकि किसी भी चीज को पाने की लालसा व्यक्ति को गलत मार्ग पर ले जाती है, जिससे सारा सुख-चैन छिन जाता है। लालच से घिरे व्यक्ति के सोचने की क्षमता क्षीण हो जाती है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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