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Aja Ekadashi Vrat Katha: अजा एकादशी पर पढ़ें यह पौराणिक कथा, राजा हरिश्चंद्र की कहानी से जानें व्रत की महिमा

Updated Aug 23, 2022 | 17:23 IST

Aja Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi: शास्त्र के अनुसार, अजा एकादशी व्रत की कथा श्रवण करने मात्र से जीवन की सभी परेशानियां क्षण भर में दूर हो जाती हैं। ऐसा कहा जाता है, कि यह व्रत भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। यहां पढ़ें अजा एकादशी की व्रत कथा हिन्दी में।

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Aja Ekadashi 2022 vrat katha

Aja Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू शास्त्र के अनुसार, सभी एकादशी में से अजा एकादशी का व्रत (Aja Ekadashi) भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। ऐसा कहा जाता है, कि यह व्रत अश्वमेध यज्ञ समान पुण्य की प्राप्ति करवाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन (Aja Ekadashi vrat 2022) भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन की बरसात होती हैं। मान्यताओं के अनुसार, अजा अकादशी व्रत कथा (Aja Ekadashi vrat Katha in Hindi) पढ़े बिना अधूरा माना जाता है। कथा पढ़ने के बाद ही पुण्य की प्राप्ति होती है। यदि आप भी इस व्रत को करने की सोच रहे हैं, तो उससे पहले आपकी इसकी कथा (Aja Ekadashi vrat story) जरूर जान लेनी चाहिए।

Aja Ekadashi Vrat Katha In Hindi

पौराणिक कथा (Aja Ekadashi vrat kahani) के अनुसार हरिश्चंद्र बेहद  प्रतापी,दयालु और सत्यवादी राजा थे। कुछ बुरे परिस्थिति आने की वजह से उनका सारा साम्राज उनके हाथों से छिन गया। यहां तक की उनकी स्त्री-पुत्र परिवार भी उनसे दूर हो गए। वह खुद को बेचारा बनकर एक चांडाल के घर नौकर का जीवन यापन करने लगें। एक दिन की बात है,राजा हरिश्चंद्र बहुत ही उदास बैठे थे। तभी उधर से गौतम ऋषि गुजर रहे थे। जब ऋषि ने राजा को उदास देखा, तो वह उनसे उनकी उदासी का कारण पूछने लगे।

तब राजा ने अपनी सारी व्यथा ऋषि गौतम को बताएं और इससे इस पीड़ा से मुक्ति पाने का उपाय भी पूछा। तब ऋषि राजा से कहें कि तुम अजा एकादशी का व्रत विधि- विधान से करों। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें इस पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी। ऋषि की यह बात सुनकर राजा हरिश्चंद्र अजा एकादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु का पूजन उपवास रखकर किया। उन्होंने रात भर जागरण करके भगवान का ध्यान भी किया। व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र के सभी पाप नष्ट हो गए और उन्हें दोबारा से परिवार राज पाट सभी प्राप्त हो गए। मृत्यु के पश्चात राजा हरिश्चंद्र को बैकुंठ धाम की प्राप्ति भी हुई।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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