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Akshaya Tritiya vrat katha: अक्षय तृतीया की व्रत कथा से जानें महत्‍व, ऐसे हुआ धर्मदास का उद्धार

Updated May 14, 2021 | 09:37 IST

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया व्रत बहुत विशेष माना जाता है और श्रद्धा भाव से इस दिन भगवान की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पुण्यदायिनी होती है और इस दिन पूजा संग कथा पढ़ने का विधान है।

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अक्षय तृतीया की कथा हिंदी में
मुख्य बातें
  • हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर अक्षय तृतीया व्रत रखा जाता है।
  • मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त अक्षय तृतीया पर दान पुण्य का काम करता है उसे अक्षय फल प्राप्त होता है।
  • अक्षय तृतीया व्रत में पूजा के बाद कथा अवश्य पढ़ना चाहिए इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। यह तिथि सनातन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर शुभ कार्य करना बेहद लाभदायक होता है क्योंकि इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। लोग इस‌ दिन दान-पुण्य, जप और तप करते हैं।

कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर घर में नई चीजें लानी चाहिए इससे घर में अक्षय वृद्धि होती है तथा सुख-समृद्धि बनी रहती है। मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना भी बेहद लाभदायक होता है। इस वर्ष अक्षय कहते हैं 14 मई को पड़ रही है। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर पूजा के साथ कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।

अक्षय तृतीया की व्रत कथा इन ह‍िंदी 

भविष्य पुराण में उल्लेखित एक पौराणिक कथा बेहद प्रचलित है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले धर्मदास नाम का एक वैश्य रहता था जो बहुत दानी स्वभाव का था। एक दिन उसे अक्षय तृतीया के महत्व के बारे में पता चला कि हर वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करने से तथा दान‌‌ करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। जब उसे यह पता चला तब वह अक्षय तृतीया व्रत पूरे विधि विधान से करने लगा और सत्तू, चना, गेहूं, दही, गुड़ आदि सामग्रियों का दान करने लगा। इसी बीच उसकी पत्नी ने उसे काफी मना किया लेकिन वह नहीं माना और श्रद्धा भाव से अक्षय तृतीया का व्रत संपूर्ण किया।

कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई और यह कहा जाता है कि कुछ दिन बाद उसका पूर्ण जन्म राजा के रूप में द्वारका के कुछ माटी नगर में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि अक्षय तृतीया व्रत करने के फल स्वरुप उसे राजयोग मिला।

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