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Ashadha Amavasya 2020: आषाढ़ अमावस्या का जानें शुभ मुहूर्त और महत्व, सूर्य ग्रहण में ऐसे करें पूजा पाठ

Updated Jun 21, 2020 | 07:12 IST

How To Do Ashadha Amavasya Puja: सूर्य ग्रहण के समय पूजा पाठ और धर्म-कर्म करने की मनाही है। लेकिन आप आषाढ़ अमावस्या के दिन जप, तप इसके शुभ मुहूर्त पर विधि अनुसार कर सकते हैं। आइए जानें....

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How to do Ashadha Amavasya
मुख्य बातें
  • आज आषाढ़ अमावस्या है और इसी दिन सूर्य ग्रहण भी पड़ रहा है।
  • अमावस्या के दिन जप, तप और दान से व्यक्ति को अमोघ फलों की प्राप्ति होती है।
  • आज के दिन तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आज आषाढ़ अमावस्या है। इसी के साथ आज के दिन साल 2020 का दूसरा सूर्य ग्रहण भी पड़ रहा है। बताया जाता है अमावस्या और पूर्णमा के दिन जप, तप और दान से व्यक्ति को अमोघ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन पितरों के लिए भी खास महत्व होता है। क्योंकि आज के दिन तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जाहिर है आज का दिन धार्मिक दृष्टि के हिसाब से विशेष महत्व रखता है। हालांकि धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय पूजा पाठ और धर्म-कर्म करने की मनाही है क्योंकि इस वक्त में राहू और केतु का प्रकोप रहता है। लेकिन आप आषाढ़ अमावस्या के दिन पूजा, जप, तप इसके शुभ मुहूर्त पर तिथि-विधि अनुसार कर सकते हैं। आइए जानें....

सूर्य ग्रहण में ये है आषाढ़ अमावस्या का पूजा का समय
21 जून दिन रविवार को सूर्य ग्रहण को सुबह 10:13 से आरंभ होगा व दिन में 1:30 तक रहेगा। यह ग्रहण भारत में दृश्य है और थोड़े थोड़े अंतराल पर देश के व‍िभ‍िन्‍न ह‍िस्‍सों में नजर आएगा। इस दौरान पूजा-पाठ करना निषेध है। ऐसे में आप सुबह सुठकर प्रात: काल में ही पूजा, तप-तप और दान कर लें। इसके बाद ग्रहण का मुहूर्त है। आप दान कर्म का कार्य ग्रहण की समाप्ति पर कर सकते हैं। 

आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि
आषाढ़ अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब सूर्य देव को जल चढ़ाएं और फिर पूजा, जप, तप, दान करें। इस दिन जिन लोगों के पूर्वजों का पिंड दान नहीं हुआ है वे पितरों को तर्पण जरूर करें। साथ ही पूजा-पाठ के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराकर बाद में आप भोजन ग्रहण करें।

आषाढ़ अमावस्या का महत्व 
इस दिन नदियों, सरोवरों में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं और फिर पूजा-पाठ, जप-तप, दान करते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन प्रवाहित जलधारा में तिलांजलि करना पुण्यकारी होता है। साथ ही अमावस्या दिन के अनुसार निर्धारित होती है। अगर सोमवार को पड़े तो इसे सोमवती अमावस्या करते हैं और शनिवार को पड़े तो शनि अमावस्या कहा जाता है। 

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