- भाद्रपद पूर्णिमा को श्राद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है
- पूर्णिमा के दिन मृत्यु प्राप्त किए पितरों का होता है इस दिन श्राद्ध
- पूर्णिमा पर कुल और गोत्र से जुड़े ऋषियों के निमित भी श्राद्ध करना चाहिए
भाद्रपद की पूर्णिमा को श्राद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पूर्णिमा से अगले 16 दिन तक पितरों के तर्पण किया जाता है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों के लिए दान-पुण्य और श्राद्ध कर्म किया जाता है। पितरों की मृत्यु की तिथि के अनुसार उनके श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। जिन पितरों की मृत्यु पूर्णिमा के दिन होती है उनका श्राद्धकर्म इसी दिन किया जाता है, भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या का महत्व बहुत अधिक है। इस दिन से श्राद्ध पक्ष शुरू हो कर 17 सितंबर को अमावस्या के दिन समाप्त होगा।
शतभिषा में आरंभ हो रहा पितृ पक्ष
इस बार पितृ पक्ष राहु के नक्षत्र शतभिषा में हो रहा है और मान्यता है कि जब भी पितृ पक्ष इस नशत्र से शुरू होता है उसका महत्व बहुत अधिक होता है। पितरों के नाम पर दान-पुण्य और तर्पण करना अत्यधिक फलीभूत माना जाता है। साथ ही पितृ दोष निवारण के लिए भी यह समय बहुत उत्तम होता है।
जानें, पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व
मान्यता है कि जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा के दिन होती है, उनका श्राद्ध इस दिन ही किया जाता है और इस दिन किया गया श्राद्ध ऋषियों को समर्पित होता है। ऋषियों के नाम पर ही हमारे कुल और गोत्र चलते हैं और जब इस दिन मनुष्य अपने पितरों का श्राद्ध करता है तो ये तर्पण और पुण्य कर्म हमारे कुल के ऋषियों को भी मिलता है। इसलिए अपने पूर्वजों के साथ अपने गोत्र से जुड़े ऋषियों के निमित भी तर्पण जरूर करांए।
इस विधि से करें पितरों का श्राद्ध
पितरों का श्राद्ध करने के लिए उनकी तस्वीर सामने रख लें और सारे ही पूजन कार्य और तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के ही संपन्न करें। साथ ही श्राद्ध कर्म दोपहर के समय करें। पितरों की तस्वीर पर सर्वप्रथम फूल की माला अर्पित करें। इसके बाद सफेद चंदन से उनका तिलक करें। अब पितरों को खीर अर्पित करने के लिए गाय के गोबर से बने उपले में अग्नि उत्पन्न करें और उस पर अपने पितरों के निमित तीन पिंडी बना कर आहुति दें।
फिर दक्षिण दिशा में मुख कर एक तांबे के लोटे में जल लें और उसमें काले तिल, जौ और एक पुष्प डाल कर तर्पण दें। इसे बाद आब कौआ, गाय और कुत्ता और चींटी को खीर-पूरी का प्रसाद खिलाएं और बाद में ब्राह्मण को भी भोजन कराएं। सारे लोगों को भोजन कराने के पश्चात ही आप भोजन करें।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन जरूर करें ये काम
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा अपने घर में कराएं। इससे मनुष्य के जीवन के हर संकट कट जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि के साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। मान्यता हे कि इस दिन भगवान सत्यनारायण के नाम से भी व्रत रखना चाहिए और गरीबों को यथा संभव दान जरूर करना चाहिए।