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Ganesh Chaturthi 2022 History: गणपति महोत्सव की किसने की थी शुरुआत, तिलक ने दिलाई राष्ट्रीय पहचान

Updated Aug 29, 2022 | 20:42 IST

Ganesh Chaturthi 2022 Ganeshotsav History: गणेश चतुर्थी का त्योहार इस साल 31 अगस्त 2022 मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहली बार गणेशोत्सव की शुरुआत किसने की थी। बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को राष्ट्रीय पहचान दिलाई, जिसके बाद यह पर्व देश और दुनिया में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

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सबसे पहली बार कब मनाा गया था गणेशोत्सव
मुख्य बातें
  • स्वराज संघर्ष के लिए तिलक ने की थी गणेशोत्सव की शुरुआत
  • 1893 में पहली बार सार्वजनिक तौर पर मनाया गया था गणेशोत्सव
  • तिलक द्वारा शुरु किए गए गणेशोत्सव को मिली राष्ट्रीय पहचान

Ganesh Chaturthi 2022 Ganeshotsav History: गणेश चतुर्थी का त्योहार हर साल ही बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हम सभी इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दौरान मंदिर से लेकर घरों और मोहल्लों में गजानन विराजमान किए जाते हैं। गणेश चतुर्थी पर पूरा माहौल गणपति की भक्ति में डूब जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी बुधवार 31 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा। गणेश उत्सव को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति उत्सव की शुरुआत कैसी हुई। सबसे पहले किसने गणेशोत्सव की शुरुआत की और इसके पीछे क्या कारण था। जानते हैं गणेश उत्सव से के इतिहास के बारे में।

महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक ने शुरू की गणेशोत्सव

सबसे पहली बार महाराष्ट्र के पुणे में सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव की शुरुआत 1893 में हुई। तिलक ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सफलता हासिल की और यही कारण है कि आज गणेशोत्सव ना सिर्फ महाराष्ट्र और भारत बल्कि दुनियाभर में मनाया जाता है। खास बात तो यह है कि गणेशोत्सव केवल धार्मिक दृष्टिकोण से जुड़ा पर्व नहीं है बल्कि इस त्योहार को आजादी के संघर्ष की ताकत, जातिवाद और छुआछूत को दूर करने का माध्यम बनाया गया है। यही कारण है कि आज हर जाति के लोग हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी इस त्योहार को मिलजुल कर मनाते हैं, जिससे गणेशोत्सव का स्वरूप सेक्युलर हो गया।

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गणेशोत्सव का इतिहास

गणेश उत्सव की शुरुआत मुख्य तौर पर 1893 मानी जाती है। लेकिन 1893 से पहले भी गणेश उत्सव मनाया जाता था। हालांकि या छोटे पैमाने पर होता था। लोग केवल अपने घरों में ही इस मौके पर गणपति की पूजा करते थे। उस समय बड़े आयोजन के साथ धूमधाम से गणेश उत्सव नहीं बनाए जाते थे और पंडाल आदि में गणपति की स्थापना नहीं की जाती थी। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जोकि एक युवा क्रांतिकारी नेता के रूप में जाने थे। वह जब भी किसी मंच पर भाषण देते थे तो ब्रिटिश अवसरों पर आग बरसा देते थे। स्वराज के संघर्ष के लिए तिलक अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाना चाहते थे। लेकिन इसके लिए उन्हें एक सार्वजनिक मंच की जरूरत थी, जहां वह अपने विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सके। इसके लिए तिलक ने गणपति उत्सव को चुना।

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इस तरह तिलक ने न सिर्फ अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाई, बल्कि गणेश उत्सव लोगों के बीच धूमधाम से मनाया जाने लगा। इस तरह गणेश उत्सव ने आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तिलक द्वारा शुरू किए गए गणेश उत्सव से गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए और आज लोगों के बीच गणेशोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।  

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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