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Hanuman Jayanti 2020: हनुमान जयंती पर करें ये काम, कष्ट मिटेंगे और मिलेगा भगवान का आशीर्वाद

Updated Apr 08, 2020 | 08:11 IST

Benefits of Hanuman Chalisa : हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां अवतार माना गया है। उनकी पूजा करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं। इसलिए बजरंग बली की पूजा के साथ उनकी चालीसा पढ़ना बहुत ही पुण्यकारी होता है।

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Benefits of Reading Hanuman Chalisa, हनुमान चालीसा पढ़ने के लाभ
मुख्य बातें
  • हनुमान जयंती पर जरूर पढ़नी चाहिए चालीसा
  • मंदिर में चालीसा का दान करना होगा शुभ
  • चमेली के तेल का दीपक जलाने से कष्ट होंगे दूर

Hanuman Jayanti 2020: भगवान शिव के एकादश रुद्रावतारों में से एक हनुमानजी हैं। आज उनकी जयंती है। हनुमान जी का जन्म वैशाख पूर्णिमा को हुआ था और इसी दिन उनकी जयंती भी मनाई जाती है। हनुमान जी की पूजा में एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि उनकी पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन जरूर हो और महिलाएं उनकी पूजा तो करें लेकिन उन्हें छुएं नहीं। अन्यथा बजरंगबली के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। हनुमान जी की पूजा में बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं होती। बस सच्चे मन से उनकी पूजा के बाद आप उनकी चालीसा का पाठ जरूर करें। 

ऐसे करें भगवान की पूजा और ध्यान

हनुमान जयंती पर हनुमान जी को चोला चढ़ाना बहुत पुण्यकारी माना गया है। जिन लोगों का मंगल भारी हो या शनि की साढ़े साती, अढैया, दशा, अंतरदशा चल रही हो उन्हें हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। साथ ही चालीसा पढ़ने से पहले हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं और चमेली के तेल में सिन्दूर मिलाकर प्रतिमा पर लेपन करें। महिलाएं बस हनुमान जी के चरणों के पास ये टीका रख दें।

इसके बाद बैठकर पहले हनुमान चालीसा का पाठ करें फिर बजरंग बाण का पाठ करें। सुन्दरकांड का पाठ यदि संभव हो तो अवश्य करें। इस दिन हनुमान जी को बूंदी जरूर चढ़ाएं और इस बूंदी को खाने से पहले भक्तों में बांटे और बाद में खुद खाएं। कोशिश करें इस दिन गरीबों में दान भी करें। इससे कष्ट कम होगा। चाहें तो मंदिर में हनुमान चालीसा की पुस्तक का भी दान करें। ऐसा करना अपके कष्टों को हर लेगा।

हनुमान चालीसा पढ़ने से कष्टों से मिलेगी मुक्ति

।। दोहा।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

।। चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मुँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गौसाईं। वृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो त बार पाठ कर कोई। छुटहि बंदि महासुख होई।

जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

।।। दोहा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।

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