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Asha Dashami Vrat 2022: महाभारत काल से हुई है आशा दशमी व्रत की शुरुआत, जानिए पूजा विधि व लाभ

Updated Jul 09, 2022 | 16:15 IST

Kab Hai Asha Dashami Vrat 2022: आशा दशमी व्रत 9 जुलाई को रखा जाएगा। इस व्रत को आरोग्य व्रत भी कहते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सारी आशाएं पूरी होती है। इस व्रत में 10 देवियों की रात में पूजा की जाती है। यह व्रत काफी फलदायी होता है।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Asha Dashami 2022
मुख्य बातें
  • आशा दशमी व्रत 9 जुलाई शुक्रवार के दिन रखा जाएगा
  • आशा दशमी व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई है
  • भगवान श्री कृष्ण ने पार्थ को इस व्रत का महत्व बताया था

Asha Dashami Vrat 2022 Puja Vidhi: किसी भी मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आशा दशमी व्रत रखा जाता है। आशा दशमी व्रत को आरोग्य व्रत भी कहा जाता है। आशा दशमी व्रत 9 जुलाई शनिवार के दिन रखा जाएगा। आशा दशमी व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई है। भगवान श्री कृष्ण ने पार्थ को इस व्रत का महत्व बताया था। यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन की सभी आशाएं पूरी होती है। इसलिए इस व्रत को आशा दशमी व्रत कहा जाता है।

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब तक कोई भी आशा पूर्ण न हो जाए तब तक आशा दशमी का व्रत रखना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि यह व्रत छह महीने एक साल व दो सालों तक करना चाहिए। आइए जानते हैं इस व्रत को रखने के लाभ और इस व्रत को करने के लिए कैसे करें पूजा पाठ।

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ऐसे करें पूजा

आशा दशमी व्रत रखने के लिए इसकी पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। आशा दशमी व्रत की पूजा रात में होती है। इस व्रत में पूजा करने के लिए 10 आशा देवियों की पूजा की जाती हैं। इस दिन माता पार्वती का पूजन जरूर करें। दसों दिशाओं में घी के दीपक जला कर धूप दीप फल आदि दसों देवियों को समर्पित करें। पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप जरूर करें 'आशाश्चाशा: सदा सन्तु सिद्ध्यन्तां में मनोरथा: भवतीनां प्रसादेन सदा कल्याणमस्त्विति'. इस मंत्र का अर्थ है - 'हे! आशा देवियों मेरी सारी आशाएं, सारी उम्मीदें सदा सफल हों, मेरे मनोरथ पूर्ण हों, मेरा सदा कल्याण हों, ऐसा आशीष दें'। पूजा व प्रार्थना करने के बाद ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

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व्रत के लाभ

यह व्रत कुंवारी कन्या भी रख सकती हैं। कुंवारी कन्या इस व्रत को श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए रख सकती हैं। वहीं शादीशुदा सुहागन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत कर सकती हैं। इसके अलावा शिशु की दंतजनिक पीड़ा भी इस व्रत को करने से दूर हो जाती है। इस व्रत में भगवान श्री हरि विष्णु से शरीर को निरोग एवं स्वस्थ रखने की प्रार्थना करें।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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