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Sri Krishna Aarti: जन्माष्टमी पूजा के बाद जरूर करें आरती, यहां पढ़िए आरती कुंजबिहारी की

Updated Jul 27, 2022 | 17:51 IST

Janmashtami 2022: 18 अगस्त को श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन पूजा के बाद कुंजबिहारी की आरती जरूर करें। क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

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जन्माष्टमी आरती
मुख्य बातें
  • जन्माष्टमी पर इस बार बनेगा वृद्धि योग
  • जन्माष्टमी पर जरूर करें कुंजबिहारी की आरती
  • श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है जन्माष्टमी त्योहार

Janmashtami Sri Krishna Kunj Bihari Aarti: हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी 18 अगस्त 2022 को पड़ रही है। वहीं इस साल जन्माष्टमी का त्योहार इसलिए भी खास होने वाला है क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इस बार जन्माष्टमी पर वृद्धि योग भी बन रहा है, जोकि काफी शुभफलदायी माना जा रहा है। जन्माष्टमी के दिन शुभ मुहूर्त में जन्माष्टमी की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन पूजा के बाद कुंजबिहारी लाल की आरती जरूर करें, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

जन्माष्टमी तिथि व मुहूर्त

जन्माष्टमी तिथि- गुरुवार, 18 अगस्त 2022

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 18 अगस्त शाम 9:21 से

अष्टमी तिथि समाप्त- 19 अगस्त रात 10:59 तक

अभिजीत मुहूर्त - 18 अगस्त को दोपहर 12:05 से 12:56 तक

शुभ वृद्धि योग - 17 अगस्त दोपहर 8:56 से 18 अगस्त रात 08:41 तक

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कुंजबिहारी लाल की आरती

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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