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Jivitputrika Vrat 2022: कब है जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में

Updated Sep 07, 2022 | 07:01 IST

Jivitputrika Vrat 2022 Date: जीवित्पुत्रिका या जितिया का व्रत वैवाहिक महिलाओं द्वारा संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है। हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माताएं अपनी संतान के स्वस्थ जीवन की कामना के लिए जितिया का निर्जला व्रत रखती हैं। जानते हैं इस बार कब रखा जाएगा जितिया व्रत।

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संतान की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए माताएं रखती हैं जीवित्पुत्रिका का व्रत
मुख्य बातें
  • संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए माताएं रखती हैं जितिया व्रत
  • अश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी को रखा जाता है जीवित्पुत्रिता का व्रत
  • जितिया व्रत में होती है जीमूत वाहन की पूजा

Jivitputrika Vrat 2022 Date Puja Vidhi and Importance: हिंदू धर्म में कई व्रत त्योहार पड़ते हैं। इनसे अलग-अलग नियम और महत्व जुड़े होते हैं। इसी तरह संतान की दीर्घायु और उन्नति के लिए जितिया का व्रत रखा जाता है। जितिया को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जानते हैं। यह त्योहार खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे स्थानों में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष जितिया व्रत अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।

जितिया का व्रत कठिन व्रतों में एक होता है जिसके नियम पूरे तीन दिनों तक चलते हैं। इसमें माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और दूसरे दिन पूजा-पाठ के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। जानते हैं इस साल कब रखा जाएगा जितिया का व्रत। साथ ही जानते हैं जितिया व्रत की पूजा विधि और इससे जुड़े महत्व के बारे में।

कब है जीवितपुत्रिका व्रत

जीवित्पुत्रिका का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और व्रत का पारण 19 सितंबर को किया जाएगा। 17 सितंबर दोपहर 2:14 पर अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी जोकि 18 सितंबर दोपहर 4:32 पर समाप्त होगी। लेकिन उदयातिथि के अनुसार 18 सितंबर को पूरे दिन जितिया का निर्जला व्रत रखा जाएगा और अगले दिन यानी 19 सितंबर को सुबह 6:10 के बाद पारण किया जा सकता है।

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जीवित्पुत्रिका पूजा विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत से एक दिन पहले नहाय-खाय के नियम होते हैं। इस दिन माताएं जल्दी उठकर स्नानादि करती हैं और पूजा पाठ के बाद ही भोजन ग्रहण करती है। अगले दिन माताएं पूरे दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन प्रदोष काल में माताएं जीमूत वाहन की पूजा करती हैं और पूजा के बाद जीवित्पुत्रिका की व्रत कथा सुनी जाती है। व्रत के दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।

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जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका का व्रत मुख्य रूप से वैवाहिक स्त्रियों द्वारा रखा जाता है। मान्यता है कि जो माताएं इस व्रत को करती हैं उनकी संतान की उम्र लंबी होती है और संतान को जीवन में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। इसके अलावा संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाएं यदि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करती हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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