- उत्तराखंड के ओल्ड लिपू लेख से किया जा सकता है कैलाश मानसरोवर के दर्शन
- आईटीबीपी में तैनात डीआईजी एपीएस निंबाडिया ने दी जानकारी
- तिब्बत में कैलाश मानसरोवर धाम जिसे चीन अपने भौगोलिक क्षेत्र में करता है दावा
नई दिल्ली। भारतीय धर्मग्रंथों के मुताबिक त्रिदेव इस पूरे संसार को संचालित कर रहे हैं। एक तरफ भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि बनाई तो विष्णु उसके पालक बने और शिव संहारक। भारतीय धर्मदर्शन में मान्यता है जो आया है उसे जाना भी होगा क्योंकि इस सिद्धांत के मुताबिक ही यह दुनिया अनंतकाल तक चलती रहेगी। इन सबके बीच हम आपको देवों के देव महादेव यानि शिव के धाम कैलाश धाम के बारे में बताएंगे।
महादेव का निवास कैलाश धाम
भौगोलिक तौर पर शिव का धाम तिब्बत में है जो चीन के अधीन है। लेकिन आस्था के जरिए वो शिवधाम हर एक भारतीय से जुड़ा है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए वैसे तो भारत सरकार की तरफ से खास इंतजाम किए जाते हैं। लेकिन ज्यादातर श्रद्धालू वीजा, पासपोर्ट या रास्तों में आने वाली कठिनाइयों की वजह से अपने आराध्य का दर्शन नहीं कर पाते हैं। लेकिन उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।
ITBP में तैनात डीआईजी ने दी जानकारी
इस संबंध में आईटीबीपी में डीआईजी एपीएस निंबाडिया ने Times Now से अपने विचार साझा किए। वो कहते हैं कि हर एक भारतीय की ख्वाहिश होती है कि वो कैलाश मानसरोवर की यात्रा करे हालांकि अलग अलग वजहों से वो संभव नहीं हो पाता है। लेकिन वैसे लोग भी भगवान शिव के धाम के दर्शन कर सकते हैं जो कैलाश नहीं जा सकते हैं। इसके लिए उन्होंने खुद के कैलाश मानसरोवर के संस्मरण की जानकारी दी। वो बताते हैं मुख्य लिपू लेख से तीन किमी पहले ओल्ड लिपू लेख से भी कैलाश पर्वत दिखाई देता है हालांकि उतना स्पष्ट तो नहीं नजर आता है। लेकिन ऐसे श्रद्धालू जो नहीं जा सकते हैं उनके लिए सुनहरा अवसर है।
उत्तराखंड सरकार के लिए बेहतरीन अवसर
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वो कहते हैं कि जब वो खुद कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर रहे थे। तो उन्होंने करीब से हर एक परेशानियों को समझा और उस संदर्भ में उत्तराखंड सरकार को प्रस्ताव दिया था। जैसा कि आप भी जानते हैं कि उत्तराखंड धार्मिक स्थलों को लेकर मशहूर है। लेकिन धार्मिक पर्यटन को उस स्तर तक बढ़ावा नहीं मिला जिसका वो हकदार था। धार्मिक पर्यटन के लिए सुझाव यह था कि कुमाऊं गढ़वाल विकास निगम ऐसे श्रद्धालू जो कैलाश मानसरोवर नहीं जा सकते हैं उन्हें ओल्ड लिपू लेख तक जत्थों में लाया जाए। इस तरह से श्रद्धालू दर्शन कर सकेंगे और सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी होगी।