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Kanya Pujan Vidhi : नवरात्रि में कन्या पूजन करने की व‍िध‍ि, माता रानी की कृपा के ल‍िए बैठाएं एक 'लंगूर' भी

Updated Apr 19, 2021 | 09:30 IST

कन्या पूजन करके नवरात्रि व्रत का विधिवत पारण किया जाता है। जो भक्त नवरात्रि में कन्या पूजन करता है उस पर मां दुर्गा की विशेष कृपा बरसती है। कन्या पूजन अक्सर महाष्टमी और महा नवमी तिथि पर किया जाता है।

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कन्या पूजन की विधि विधान
मुख्य बातें
  • नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि अनुसार पूजा की जाती है।
  • महाष्टमी और महानवमी नवरात्र के अहम दिनों में से एक हैं, इस दिन लोग कन्या पूजन करके व्रत पारण करते हैं।
  • महाष्टमी और महानवमी नवरात्र के अहम दिनों में से एक हैं, इस दिन लोग कन्या पूजन करके व्रत पारण करते हैं।

इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से प्रारंभ हुई थी। पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्रि 22 अप्रैल को समाप्त होगी। नवरात्रि व्रत पारण करने से पहले लोग कन्या पूजन करते हैं तथा कन्याओं को भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। कन्या पूजन के लिए लोग महाष्टमी और महा नवमी तिथि अनुकूल समझते हैं। महाष्टमी तिथि पर मां महागौरी की पूजा करने के बाद लोग घर में हवन करवाते हैं। वहीं कुछ लोग महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद हवन करवाते हैं। हवन करवाने के बाद कन्या पूजन किया जाता है फिर व्रत का पारण करते हैं। चैत्र मास की महा नवमी पर नवरात्रि समाप्त होती है।

अगर आप भी कन्या पूजन करके व्रत पारण करना चाहते हैं तो यहां जानें कन्या पूजन की विधि।

कन्या पूजन की विधि

अगर आप महाष्टमी पर कन्या पूजन कर‌ रहे हैं तो मां महागौरी की पूजा करने के बाद कन्या पूजन करें अन्यथा महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद कन्या पूजन करें। कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं और एक लंगूर को बिठा लीजिए। नौ कन्याएं मां दुर्गा के नौ स्वरूप को दर्शाती हैं वहीं एक लंगूर भैरव को दर्शाता है। अगर किसी कारणवश नौ कन्याएं बिठाने में आप असमर्थ हैं तो कुछ ही कन्याओं में भी यह पूजन किया जा सकता है। जितनी कन्याएं बची हैं उनका भोजन आप गौमाता को खिला सकते हैं। 

कन्याओं और लंगूर का पैर धोकर उन्हें आसन पर बिठा दीजिए। अब सभी कन्याओं और लंगूर को तिलक लगाइए और आरती कीजिए। मंदिर में मां को भोग लगाने के बाद कन्याओं और लंगूर को भोजन करवाइए। भोजन के पश्चात उन्हें फल और दक्षिणा दीजिए। अंत में सभी कन्याओं और भैरव का पैर छूकर आशीर्वाद लीजिए और सम्मान पूर्वक सभी को विदा कीजिए।

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