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Karwa and Sargi meaning: करवा चौथ के व्रत में क्‍यों जरूरी है करवा और सरगी, जानें इनका उपयोग

Updated Oct 22, 2021 | 13:06 IST

Karwa Chauth 2021: करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस बार यह व्रत 24 अक्‍टूबर को है। व्रत की शुरुआत सरगी के साथ होती है।

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sargi and karwa
मुख्य बातें
  • करवा चौथ के व्रत में बहू को सास भेजती है सरगी
  • सरगी का सामान खाने के बाद व्रत की होती है शुरुआत
  • करवा माता की पूजा करने का भी है विधान

Karwa and Sargi meaning and importance: कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और तरक्‍की के लिए पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं। करवा चौथ के व्रत संबंध में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ के व्रत का महत्‍व बताया था। इसके अलावा द्रौपदी ने अर्जुन के लिए यह व्रत रखा था। तभी से पत्नियां अपने पति की सलामती के लिए यह उपवास रखती हैं। इस बार यह व्रत 24 अक्‍टूबर, रविवार को है। करवा चौथ के व्रत में करवा और सरगी का विशेष महत्‍व होता है। इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं हो सकता है। तो क्‍या हैं ये चीजें और इनका कैसे उपयोग किया जाता है आइए जानते हैं।

क्या होता है करवा?

करवा मिट्टी का एक बर्तन होता है। इसे देवी का प्रतीक चिन्‍ह समझकर पूजा की जाती है। कुछ लोग तांबे या स्‍टील के लोटे को करवे के तौर पर इस्‍तेमाल करते हैं। पूजा के दौरान दो करवे बनाए जाते हैं। इसमें एक देवी मां का होता है, दूसरा सुहागिन महिला का। 

पूजा में कैसे होता है प्रयोग

पूजा करते समय और कथा सुनते समय दो करवे रखने होते हैं,  एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उनकी सास ने दिया होता है और दूसरा वो जिसमें पानी भरकर बायना देते समय उनकी सास को देती हैं। करवा में रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक बनाया जाता है। 
 एक करवे में जल तथा दूसरे करवे में दूध भरते हैं और इसमें ताम्बे या चांदी का सिक्का डालते हैं। जब बहू व्रत शुरू करती है, तो सास उसे करवा देती है, उसी तरह बहू भी सास को करवा देती है। आमतौर पर मिट्टी का करवा इस्‍तेमाल किया जाता है, कई जगह स्टील के लोटे का प्रयोग भी किया जाता है। 

करवा चौथ की पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार करवा नाम की स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था तभी एक मगरमच्‍छ ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य अपनी पत्नी को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर पत्नी करवा वहां पहुंची और मगरम्छ को कच्चे धागे से बांध दिया। इसके बाद महिला यमराज के पास पहुंची और विनती करते हुए कहा कि हे भगवन! मगरमच्छ को आप नरक में ले जाओ। यमराज बोले, उसकी आयु शेष है, उसे नहीं मार सकते। इस पर करवा बोली, 'अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप दें दूंगी।' यह सुनकर यमराज मगरमच्‍छ को यमपुरी भेज दिया। तभी से उस महिला को करवा माता कहने लगे और उनकी पूजा की जाने लगी। 

सरगी का क्‍या है मतलब 

सरगी आम तौर पर पंजाबी समुदाय के लोगों में ज्‍यादा प्रचलित होती है, लेकिन दूसरे समुदाय के लोग भी इसका प्रयोग करते हैं। सरगी का मतलब है कि सास की ओर से बहू को करवा चौथ पर दी जाने वाली एक तरह की भेंट। यह भोजन की एक ऐसी थाली होती हैं जिसमें कुछ खास चीजें होती हैं। इन्‍हें खाने के बाद दिनभर निर्जला उपवास रखा जाता है। 

सरगी की थाली में ऐसी चीजें होती है जिसे खाने से भूख और प्यास कम लगती है और दिनभर एनर्जी बनी रहती। इसमें सूखे मेवे और फल होते हैं। साथ ही मिठाई होती है। अगर सास सरगी नहीं दे सकती तो  बहू को पैसे भिजवा सकती हैं। सरगी में खाने के सामान के अलावा कपड़े, सुहाग की चीज, फेनिया, नारियल आदि रखे होते हैं। 

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। 

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