- श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए हैं और इन उपदेशों की मदद से भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को इस संसार का सत्य बताते हैं
- श्रीमद्भगवद्गीता अर्जुन और उनके साथी भगवान श्री कृष्ण के बीच का संवाद है
- भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान उपदेश दिए थे, वहीं बात श्रीमद्भगवद्गीता में पढ़ने को मिलती है
Shrimad Bhagavad Gita Importance: हिंदू धर्म में श्रीमद्भगवद्गीता का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में सभी ग्रंथों में सबसे श्रेष्ठ श्रीमद्भगवद्गीता मानी जाती है, क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन का सार है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए हैं और इन उपदेशों की मदद से भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को इस संसार का सत्य बताते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता अर्जुन और उनके सारथी भगवान श्री कृष्ण के बीच का संवाद है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान उपदेश दिए थे, वही बात श्रीमद्भगवद्गीता में पढ़ने को मिलती है। इसमें ज्ञान योग, कर्म योग, राजयोग आदि के बारे में चर्चा की गई है और उन सबका महत्व बताया गया है। श्री भागवत गीता में 18 अध्याय हैं और 720 श्लोक हैं। श्रीमद्भागवत गीता की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। जिसका हिंदी अर्थ भी मिलता है। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे व तीसरे अध्याय में विशेष बातें कही गई है। आइए जानते हैं इसका अर्थ।
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दूसरा अध्याय
गीता के दूसरे अध्याय सांख्य-योग+ में कुल 72 श्लोक हैं जिसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, बुद्धि योग और आत्म का ज्ञान देते हैं। यह अध्याय वास्तव में पूरी गीता का सारांश है। इसे बेहद महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।
श्लोक- श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥
दूसके अध्याय का अर्थ
श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! इस विषम अवसर पर तुम्हे यह कायरता कहां से प्राप्त हुई? जिसका न तो श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा सेवन किया जाता है, न ही यह स्वर्ग को देने वाली है और न ही कीर्ति को करने वाली ही है।
तीसरा अध्याय
गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग है, इसमें 43 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण इसमें अर्जुन को समझाते हैं कि परिणाम की चिंता किए बिना हमें हमारा कर्म करते रहना चाहिए।
श्लोक- श्रीभगवानुवाच
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्
तीसरे अध्याय का अर्थ
श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)