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जानें साईं के माथे के तिलक से लेकर चिमटा और कफनी तक से जुड़ी सभी बातें

Updated Nov 05, 2020 | 06:07 IST

Interesting things related to Sai: साईं अपने जीवन में कई धर्म गुरु से मिले और इन गुरुओं ने उन्हें अपनी प्रिय चीजें भेंट की। साईं को किससे क्या मिला और उन्होंने अपने रहने का स्थाई ठिकाना कैसे चुना आइए जानें।

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Interesting things related to Sai, साईं से जुड़ी रोचक बातें
मुख्य बातें
  • साईं अपने निवास स्थान को द्वारका माई कहा करते थे
  • साईं को चिमटा और कफनी धर्म गुुरु ने प्रेमस्वरूप भेंट की थीं
  • साईं ने द्वारका माई में अपनी शक्ति से प्रज्जवलित की थी ज्योत

शिरडी के साईं बाबा का जीवन फकीर की तरह रहा और वह अपने जीवन में कई स्थानों पर भ्रमण करते रहे। इस दौरान वह कई धर्म गुरुओं के साथ रहे और उनसे शिक्षा ग्रहण की। साईं के स्वभाव और उनकी सादगी का ही नतीजा था इन गुरुओं ने प्रेम स्वरूप साईं को कई चीजें भेंट की। साईं ने इन भेंट को अपने जीवन पर्यंत साथ रखा। इसी तरह से से साईं ने शिरडी में एक स्थाई ठिकाना रहने के लिए तय किया और इसके पीछे भी एक घटना बताई जाती है। तो आइए साईं से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी आज आपको दें।

नीम के पेड़ के नीचे रहते थे कभी साईं

सांईं बाबा शिरडी में कई साल एक नीम के वृक्ष के नीचे रहे थे। वहीं पास में एक खंडहर हुआ करती थी। इस खंडहर में कभी कोई न आता था न ही वहां किसी प्रकार की कोई गतिविधि होती थी। साईं नीम के पेड़ के नीचे ही रहते थे और एक बार वह बिना बताएं ही कई साल के लिए शिरडी छोड़ कर चले गए। लोगों ने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन वे नहीं मिले, लेकिन तीन साल बाद वह सांईं चांद पाशा पाटिल (धूपखेड़ा के एक मुस्लिम जागीरदार) के साथ उनकी साली के निकाह के लिए बैलगाड़ी में बैठकर बाराती बनकर वापस शिरडी आए। बारात जहां रुकी थी, वहीं सामने खंडोबा का मंदिर था जहां के पुजारी म्हालसापति थे। साईं मंदिर में गए और उन्हें देख कर तुरंत म्हालसापति ने उन्हें बोला,  'आओ सांईं'। यहीं से उनका नाम साईं पड़ गया। बाबा ने कुछ दिन मंदिर में रह गए लेकिन एक दिन उन्होंने यह महसूस किया उनके रहने से म्हालसापति को दिक्कत हो रही है और वह संकोचवश कुछ भी नहीं कह पा रहे थे। यह देख साईं वहां से फिर से उस नीम के पेड़ के पास आ कर रहने लगे।

खंडहर को नाम दिया था द्वारका माई

साईं ने नीम के पेड़ के पास स्थित खंडहर को साफ-सुथरा करके अपने रहने का स्थान बना लिया। उन्होंने उस खंडहर का नाम रखा द्वारका माई। बाद में साईं के भक्तों ने इस खंडहर की मरम्मत की और वहां साईं के लिए घर बना दिया। फिर बाद में वहीं बापू साहेब बूटी वाड़ा भी बनाया गया। वहीं, बाबा का समाधि मंदिर बना हुआ है। इसी के प्रांगण में हनुमान मंदिर  पहले भी था। यह मंदिर आज भी मौजूद है।

बाबा ने जलाई थी पहली बार द्वारका माई में अखंड दीप

बाबा ने अपने घर यानी द्वारका माई में अपनी यौगिक शक्ति से अग्नि प्रज्जवलित की थी, जो आज भी निरंतर जल रही है। इस दीप को कभी भी बुझने नहीं दिया गया है। भक्त जिसे निरंतर लकड़ियां डालते हुए आज तक सुरक्षित रखा गया है। उस धूने की भस्म को बाबा ने ऊदी नाम दिया और वह इसे अपने भक्तों को बांटते थे। मान्यता है कि इस धूनी को लगाने से रोग दूर होते हैं।

चावड़ी तक इसलिए आती है शोभायात्रा

द्वारका माई के समीप ही एक चावड़ी भी थी, जहां बाबा एक दिन छोड़कर विश्राम करने जाते थे। यही कारण है कि आज भी भक्त सांईं बाबा की शोभायात्रा चावड़ी लाते हैं।

जानें, किसने दिया कफनी और चिमटा

साईं के माथे पर हमेशा ही कफनी बांधी रहती थी और ये कफनी धर्मगुरु वैकुंशा बाबा ने बांधी थी और उनको जो सटाका (चिमटा) सौंपा था वह उनके प्रारंभिक नाथ गुरु ने दिया था। साईं के माथे पर सर्वप्रथम तिलक शैवपंथी के नाथ पंथ के योगी ने लगाया था और साईं से वचन लिया था कि वह इस तिलक को जीवनभर धारण करेंगे।

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