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Laxmi Jayanti Vrat Katha: लक्ष्मी जयंती व्रत कथा हिंदी में, जानें मां लक्ष्मी के प्राकट्य की पौराणिक कहानी

Updated Mar 18, 2022 | 16:43 IST

Laxmi Jayanti 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार 18 मार्च 2022, शुक्रवार को लक्ष्मी जयंती का पावन पर्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं और असुरों में अमृत कलश को लेकर समुद्र मंथन हो रहा था, तब मां लक्ष्मी का उद्भव हुआ था।

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Laxmi Jayanti vrat katha in hindi
मुख्य बातें
  • सनातन धर्म में लक्ष्मी जयंती का है विशेष महत्व।
  • इस दिन शंख पूजन का भी है विधान, शंख को माना जाता है मां लक्ष्मी का भाई।
  • समुद्र मंथन से हुआ था मां लक्ष्मी का उद्भव, पढ़िए पूरी कथा।

Laxmi Jayanti 2022 Vrat Katha in Hindi: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को समुद्र मंथन से धन की देवी मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से धन संबंधी सभी समस्याओं का निवारण होता है और माता का आशीर्वाद सदैव अपने भक्तों पर बना रहता है। वहीं इस दिन शंख की पूजा का भी विधान है, कहा जाता है कि लक्ष्मी पूजन के बाद शंख बजाना चाहिए इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। आपको बता दें शंख को लक्ष्मी जी का भाई माना गया है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति भी समुद्र से हुई है।

हिंदू पंचांग के अनुसार आज यानी 18 मार्च 2022, शुक्रवार को लक्ष्मी जयंती का पावन पर्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं और असुरों में अमृत कलश को लेकर समुद्र मंथन हो रहा था, तब मां लक्ष्मी का उद्भव हुआ था। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार बिना आरती व कथा के पूजा संपूर्ण नहीं मानी जाती। ऐसे में यहां एक क्लिक कर आप लक्ष्मी जयंती की पूरा कथा पढ़ सकते हैं।

लक्ष्मी जयंती पर ऐसे करें पूजा, देखें मां लक्ष्मी की विधि, आरती और मंत्र

लक्ष्मी जयंती की व्रत कथा, Laxmi Jayanti ki Kahani

भविष्य पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार जब राक्षसों ने स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया, तब इंद्रदेव सभी देवी देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास गए और अपनी समस्या से अवगत कराया। श्रीहरि ने कहा कि यदि इस संसार को फिर एक बार समृद्ध करना है और सभी देवों की शक्तियों और स्वर्ग का वैभव वापस लाना है, तो समुद्र मंथन करना होगा। लेकिन यह देवताओं के लिए आसान नहीं था क्योंकि स्वर्ग लोक खोने के बाद सभी देवी देवता दुर्बल हो चुके थे।

इस समस्या का हल निकालते हुए भगवान विष्णु ने कहा कि इसके लिए असुरों की मदद लें तथा मंथन के लिए मंद्राचल पर्वत का प्रयोग किया गया। पर्वत के साथ वासुकी यानी सर्पों के राजा ने रस्सी के रूप में सहायता की। वासुकी के पूंछ वाला हिस्सा देवताओं ने पकड़ा और मुख वाला हिस्सा दानवों ने पकड़ा। इस दौरान मंद्राचल पर्वत को सहायता देने के लिए भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया। तथा मंथन के दौरान चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई। उन्हीं चौदह रत्नों में से, एक हांथ में कलश और दूसरे हांथ में वर मुद्रा धारण किए हुए मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई। इस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी, तब से प्रत्येक वर्ष लक्ष्मी जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है।

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