लाइव टीवी

Lord Shiva: भगवान शिव को क्यों कहते हैं पंचानन, क्या है इसका महत्व, जानें पंचमुखी अवतार के बारे में

Updated Jun 16, 2022 | 19:30 IST

Lord Shiva Panchanan: कहा जाता है कि श्रृष्टि की रचना के लिए भगवान शिव ने पांच मुख धारण किया था। शिव के पांच मुख से जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी की उत्पति हुई। वहीं पंचानन का अर्थ होता है पांच मुख वाले।

Loading ...
भगवान शिव
मुख्य बातें
  • शिवजी के पांच मुख को कहा जाता है पंचानन
  • श्रृष्टि की रचना के लिए भगवान शिव ने लिया पंचमुखी अवातर
  • शिवजी के चार मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है

Lord Shiva Panchanan Importance: भगवान शिव की कृपा और महिमा से ही पृथ्वी पर जीवन है। शिवजी ने ही पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की। दरअसल जब श्रृष्टि की उत्पत्ति हुई थी तब मानव जीवन के लिए कुछ भी नहीं था। फिर भगवान शिव ने श्रृष्टि की रचना और जीवन के लिए पांच मुख धारण किए। इसलिए भी उन्हें पंचमुखी या पंचानन कहा जाता है। शिव के पांच मुख से जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी जैसे पांच तत्वों की उत्पत्ति हुई। शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि जगत के कल्याण के लिए भगवान शिव ने कई अवतार भी लिए। जानते हैं शिवजी के पंचानन, पंचत्तव और पांच अवातरों के बारे में..

Also Read: Panchak Kaal: कब है मृत्यु पंचक, क्यों माना जाता है पंचक में मृत्यु को अशुभ, जानें क्या होता है परिणाम

क्यों कहते हैं शिवजी को पंचानन

पंच यानी पांच और आनन यानी मुख। इसका अर्थ है पांच मुख वाले भगवान शिव। भगवान शिव के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान हैं। इसलिए उन्हें पंचानन या पंचमुखी कहा जाता है। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं, जिस कारण उनके कई नामों में एक नाम त्रिनेत्रधारी भी है।

Also Read: Disha Shool: गलत दिशा में यात्रा करने से बढ़ सकती है मुश्किलें, जाने दिशाशूल के बारे में

भगवान शिव के पंचानन रूप की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्री हरि विष्णु ने मनोहर किशोर रूप धारण किया। उन्हें इस अत्यंत मनोहर रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनंत आदि सभी देवतागण आए। उन्होंने भगवान के रूपमाधुर्य का अधिक आनंद लिया और प्रशंसा की। ये देख शिवजी सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख और नेत्र होंगे तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता। शिवजी के मन में यह इच्छा जागृत हुई और उन्होंने पंचमुख व पंचानन रूप ले लिया।

शिवजी के पंचमुख का महत्व

कहा जाता है कि भगवान शिव के पांचों मुख में चार मुख चारों दिशाओं में और एक मध्य में है। पश्चिम दिशा में शिवजी का सद्योजात मुख है, जोकि बालक के समान स्वच्छा, शुद्ध और निर्विकार है। उत्तर दिशा में विकारों का नाश करने वाला वामदेव मुख है। दक्षिण दिशा में अघोर मुख है, जोकि निन्दित कर्म को शुद्ध बनाता है। पूर्व दिशा में शिवजी का तत्पुरुष नाम का मुख है, जिसका अर्थ होता है अपने आत्मा में स्थिर रहना। वहीं पांचवा मुख ऊर्ध्व ईशाण में है।

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल