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शिव महापुराण के अनुसार जानें 5 तरह के पाप और इनसे बचने के उपाय

Updated Aug 10, 2020 | 08:00 IST

Shiv Dham, Types Of Sin: शिवपुराण में मनुष्य के किए गए 5 कर्मों को पाप की श्रेणी में रखा गया है। मान्यता है कि भगवान शिव ने खुद इन पापों का निर्धाण किया है।

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भगवान शिव।
मुख्य बातें
  • मानसिक और शारीरिक पाप के अलावा हैं 3 और तरह के पाप
  • शिवपुराण में भगवान शिव ने 5 तरह के क्रिया को माना है पाप
  • गलत लोगों का साथ भी पाप की श्रेणी में ही माना गया है

मनुष्य को लगता है कि वह किसी के साथ अन्याय नहीं कर रहा तो वह पाप से मुक्त है, लेकिन जाने-अनजाने वह कई ऐसे कर्म कर रहा होता है जिससे उसके पाप का घड़ा भरता रहता है। लोगों को शायद ही ये पता होगा कि सामान्य सी बात समझ कर दैनिक जीवन में वह जो रोज कुछ कर्म कर रहे होते हैं, शिवपुराण में वह पाप की श्रेणी में आता है। शिव महापुराण एक प्रसंग में भगवान शिव ने इंसान द्वारा किए जाने वाले पापों के बारे में बताया है। इसलिए यह जरूरी है कि आप उन कर्मों के बारे में जानें, ताकि इन पाप से बच सकें।

शिवपुराण के अनुसार ये पांच कर्म करने से बनते हैं पाप के भागी

मानसिक पाप : मन में आने वाले किसी भी प्रकार के गलत विचार ही मानसिक पाप की श्रेणी में आते हैं। भले ही आप मन में उपजे पाप को क्रियान्वित न करें, लेकिन मन में उपजे इस विचार के आने भर से आप पाप के भागी बनते हैं। इसलिए मन में ऐसे विचार लाने से बचें ताकि मानिसक पाप के आप भागी न पड़ सकें। मन को नियंत्रित करने के लिए योग और ध्यान करना चाहिए। ताकि मन में शुद्ध विचार ही पनपे।

वाचिक पाप : मन में कुछ बात आते ही उसे बिना सोचे-समझे बोल देना वाचिक पाप की श्रेणी में आता है। यदि आपकी बात से किसी को कष्ट पहुंचे या आप कोई अर्नगल बातें करें तो इससे वाचिक पाप एकत्र होता है। आपके द्वारा बोले गए हर शब्द का महत्व होता है और यदि वह शब्द किसी के दुख का कारण बनें तो आप वाचिक पाप के भागी बनेंगे। इस पाप से बचने के लिए कुछ भी बोलने से पहले उसे अपने मन मे सोचें और तब बाहर निकालें।

शारीरिक पाप : आपके शरीर से यदि किसी को कष्ट पहुंचे तो वह शारीरिक कष्ट की श्रेणी में आता है। भगवान शिव के अनुसार पेड़-पौधे, जानवर या किसी भी तरह के प्राणी को चोट पहुंचाना शारीरिक पाप है। इसलिए मनुष्य को अपनी ताकत का अर्नगल प्रयोग नहीं करना चाहिए। शरीर की शक्ति लोगों की मदद के लिए करना ही सदकर्म माना गया है।

निंदा करने का पाप : यदि आप किसी की कमियां निकालते हैं और यह सोचते हैं कि आपने कोई पाप नहीं किया तो आप गलत हैं। निंदा करना भी पाप की श्रेणी में माना गया है, क्योंकि निंदा करने से मन में बुरे विचार आते हैं और मुख से अपशब्द निकलते हैं। इससे दूसरों की छवि खराब होती है और आप पाप के भागी बनते हैं।

गलत लोगों से संपर्क से पाप : मदिरापान, चोरी, हत्या, व्यभिचार करना एक बड़ा पाप है, लेकिन ऐसे कर्म करने वालों के साथ रहना भी कम पाप नहीं है। भगवान शिव ने ऐसे पापियों के साथ रहने वालों को भी पापी माना है। इसलिए पाप कर्म करने वालों से दूर रहे और सदकर्म करने वालों का साथ पकड़ें।

तो शिवपुराण में वर्णित इन पांच तरह के पाप से आप जरूर बच रहें, क्योंकि ये आपके बैकुंठ के मार्ग का अवरोधक बनता है।

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