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माता के इस मंदिर में बिना तेल और बाती के जलती हैं 9 ज्वालाएं, जानिए मंदिर की अद्भुत कहानी

  Maa jwala devi mandir One of the 51 Shaktipeeths
Updated Jan 21, 2021 | 21:55 IST

51 शक्तिपीठों में से एक मां ज्वालामुखी का यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में अद्भुत है। इस मंदिर में माता की कोई मूर्ती स्थापित नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही माता के नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है।

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  Maa jwala devi mandir One of the 51 Shaktipeeths  Maa jwala devi mandir One of the 51 Shaktipeeths
तस्वीर साभार:&nbspTwitter
Maa jwala devi mandir /मां ज्वाला देवी मंदिर।
मुख्य बातें
  • यहां पर पृथ्वी से निकल रही माता के नौ ज्वालाओं की कि जाती है पूजा
  • माता के चमत्कार को देख अकबर ने चढ़ाया था सोने का छत्र जो धातु में हो गया था तबदील
  • मंदिर में बिना तेल और बाती के जलती हैं नौ ज्वालाएं

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश से 30 किलमीटर की दूरी पर स्थित मां ज्वाला का प्रसिद्ध मंदिर है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक मां ज्वालामुखी का यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में अद्भुत है।

सबसे हैरान कर देनेवाली बात यह है कि मां ज्वालामुखी के इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही माता के नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। मंदिर में बिना तेल औऱ बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं जो माता के नौ स्वरूपों का प्रतीक है। कई भू वैज्ञानिकों और पुरात्त्व विभाग द्वारा कई किलोमीटर तक की खुदाई करने के बाद भी इसका पता नहीं सके कि यह ज्वाला आखिर कहां से निकल रही है। आइए जानते हैं मां ज्वालामुखी के मंदिर की नौ ज्वालाओं के बारे में और इसकी पौराणिक कथा।

मां की नौ ज्वालाएं

मां ज्वालामुखी के इस मंदिर में पृथ्वी से निकली नौ ज्वालाओं की पूजा-अर्चना की जाती है, जो माता के नौ स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती है। मंदिर में एक सबसे बड़ी ज्वाला जल रही है, जिसे मां ज्वाला का स्वरूप माना जाता है। दूसरी तरफ आठ ज्वालाओं को मां अन्नापूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चंण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी और माता अंजी देवी का स्वरूप माना जाता है।

मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। जिससे माता सती यहां पर मां ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां पर उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं।

दूसरी कथा

मां ज्वाला के मंदिर से लेकर एक और पौराणिक कथा है जिसके मुताबिक माता के परम भक्त बाबा गोरखनाथ माता के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा माता की भक्ति में लीन रहते थे। एक बार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां ज्वाला से कहा कि माता आप पानी गर्म करके रखिए तब तक मैं भिक्षा मांगकर आता हूं। इसके बाद जब बाबा गोरखनाथ भिक्षा लेने गए तो वापस नहीं आए। मान्यता है कि यह वहीं ज्वाला है जो मां ज्वालामुखी ने जलाई थी, जिससे कुछ दूरी पर बने कुंड में पानी से भाप निकलता है। इस कथा को लेकर मान्यता है कि कलियुग के अंत में बाबा गोरखनाथ वापस लौटकर आएंगे तब तक यह ज्वाला गोरखनाथ के इंतजार में जलती रहेगी।

अकबर ने एक बार ज्वाला बुझाने कि की थी कोशिश

बादशाह अकबर ने जब मां ज्वालमुखी के इस मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो वह अपनी सेना के साथ ज्वाला बुझाने के लिए पहुंचा। उसकी सेनाओं द्वारा ज्वाला बुझाने का भरसक प्रयास किया गया लेकिन वह इसमें नाकामयाब रहा। माता के इस चमत्कार को देख वह नतमस्तक हो गया और अगले दिन सोने का छत्र लेकर वह मां ज्वालामुखी के मंदिर में माता को चढ़ाने के लिए पहुंचा कहा जाता है कि लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र नीचे गिरकर धातु के रूप में तबदील हो गया।

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