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Makar Sankranti 2021: मकर संक्रांति पर जानें क्यों है तिल का विशेष महत्व, जानें पौराणिक कथा

Updated Jan 08, 2021 | 13:29 IST

Makar Sakranti Til Imoprtance: मकर संक्रांति पर तिल का विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल छूने से लेकर दान करने और खाने तक का विधान होता है। तिल का इतना महत्व इस दिन क्यों हैं, आइए जानें।

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Makar Sakranti Til Imoprtance, मकर संक्रांति पर तिल का महत्व
मुख्य बातें
  • मकर संक्रांति के दिन तिल से शनिदेव ने की थी सूर्य की पूजा
  • सूर्यदेव के साथ शनिदेव को भी तिल से है बेहद प्रेम
  • इस दिन तिल का दान, स्नान और खाना बहुत महत्व रखता है

मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी को मनाई जाएगी। पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्‍तरायण होते हैं और उनका मकर राशि में गोचर होता है तब मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान के साथ ही दान-पुण्य का विशेष महत्व माना गया है। माना जाता है कि इस दिन यदि मनुष्य तिल का दान कर दे तो उसे बड़ा पुण्य और कोई नहीं होता। मकर संक्रांति के दिन तिल दान के साथ तिल के पानी से स्नान, तिल को छूना और खाना भी जरूरी होता है। तिल का दान करने की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर्व को तिल संक्रांति भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, सूर्य और शनि की पूजा तिल से क्यों की जाती है? नहीं, तो आइए आपको इसके पीछे का रहस्य बताएं।

तिल का दान करने से सूर्य और शनि दोनों ही प्रसन्न होते हैं, क्योंकि तिल उनकी प्रिय वस्तु है। मकर संक्रांति के दिन तिल का दान करने से राहु और शनि दोष दूर होते। मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी इसलिए इस दिन तिल का महत्व और भी बढ़ जाता है। सूर्य भगवान के साथ ही मकर संक्रांति पर भगवान विष्णु की पूजा भी होती है।

जानें, तिल से जुड़ी भगवान सूर्य की पौराणिक कथा

श्रीमद्भागवत के अनुसार, सूर्यदेव की दो पत्नियां मानी गई हैं। एक का नाम छाया है और दूसरी का नाम संज्ञा है। छाया के पुत्र शनिदेव हैं और संज्ञा के पुत्र का नाम यमराज है। सूर्य और शनि में एक बार बहुत बैर हो गया क्योंकि शनि महाराज ने अपने पिता सूर्य को उनकी माता छाया और संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था। इससे वह इतने नाराज हुए की अपनी माता को लेकर वह पिता सूर्य के घर से कहीं और चले गए। साथ ही छाया ने अपने पति सूर्य को घर से निकलते समय श्राप दिया कि उन्हें कुष्ठ रोग हो जाए। श्राप के असर में सूर्य भगवान को कुष्ठ रोग ने घेर लिया और वह बहुत कष्ट में आ गए। तब उनके पुत्र यमराज से यह कष्ट नहीं देखा गया और उन्होंने अपने पिता को इस कष्ट से मुक्त करने के लिए कठिन तप किया और पिता को कुष्ठ से मुक्त करा दिया। सूर्य अपने पुत्र शनि से इतना नाराज थे कि उन्होंने उनका घर कुंभ (जिसे शनि की राशि कहा जाता है) को जला दिया।

घर जल जाने की वजह से शनि महाराज और उनकी मां को कष्ट भोगना पड़ा। इससे यमराज काफी परेशान हो गए और पिता सूर्यदेव को काफी समझाया। इसके बाद सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे और देखा कुंभ पूरी तरह से जल चुका है। अपने पिता को घर आया देख शनि ने उनका स्वागत करने की सोची लेकिन घर में कुछ नहीं था सिवाए तिल के। तब उन्होंने अपने पिता की तिल से पूजा की। जिस दिन सूर्य, शनिदेव के घर गए थे, उस दिन मकर संक्रांति थी।

शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा और उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।

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