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Mauni Amavasya Vrat Katha: पौराण‍िक कहानी से जानें मौनी अमावस्‍या की व्रत कथा, इस कारण इस दिन रहा जाता है मौन

Updated Feb 01, 2022 | 07:28 IST

Mauni Amavasya 2022 Vrat Katha in Hindi: मौनी अमावस्‍या की व्रत कथा से जानें इसका महत्‍व। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन मन और वांणी पर विराम रखते हुए स्नान कर प्रभु के नाम का स्मरण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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Mauni Amavasya vrat katha in hindi
मुख्य बातें
  • इस बार मौनी अमावस्या 1 फरवरी 2022, मंगलवार को है।
  • सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है
  • बिना व्रत कथा का पाठ किए व्रत को नहीं माना जाता पूर्ण।

Mauni Amavasya 2022 Vrat Katha in Hindi: सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा के बीच का अंतर शून्य हो जाता है तो अमावस्या तिथि का योग बनता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या की तिथि भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था, इस दिन मौन व्रत कर विधिवत श्रीहरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है। 

इस बार मौनी अमावस्या 1 फरवरी 2022, मंगलवार को है। हालांक‍ि मौनी अमावस्या तिथ‍ि का प्रारंभ 31 जनवरी 2022 को दोपहर करीब 2 बजे से हो रहा है। लेक‍ि‍न सूर्य उदया तिथ‍ि 1 फरवरी होने से स्‍नान और दान का योग इस द‍िन है। मौनी अमावस्या पर मौन धारण कर स्नान करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन मन और वांणी पर विराम रखते हुए स्नान कर प्रभु के नाम का स्मरण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन पीपल के पेड़ व भगवान विष्णु की विधिवत पूजन भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार बिना व्रत कथा पाठ किए किसी भी व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता। 

Mauni Amavasya Vrat Kahani, मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र और एक पुत्री थी, पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राम्हण ने सातों पुत्रों का विवाह करने के बाद बेटी के लिए वर तलाश करने के लिए अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसने एक ज्योतिषी को कन्या की कुण्डली दिखाई, उसने बताया कि विवाह होते ही कन्या विधवा हो जाएगी। ज्योतिषी की बात सुन ब्राह्मण दुखी हो गया और उसने इसका उपाय पूछा।

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उपाय पूछे जाने पर, ब्राह्मण ने बताया कि सिंहल द्वीप पर एक सोमा नामक धोबिन रहती है, यदि कन्या की शादी से पहले घर आकर वह पूजन करे तो यह दोष दूर हो जाएगा। ब्राम्हण ने गुणवती को अपने सबसे छोटे पुत्र के साथ सिंहलद्वीप भेजा, दोनों सागर किनारे पहुंचकर उसे पार करने की कोशिश करने लगे। जब समुद्र को पार करने का कोई रास्ता नहीं मिला तो भूखे प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। पेड़ पर घोसले में एक गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे, वे सुबह से भाई बहन के क्रियाकलापों को देख रहे थे।

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शाम को जब गिद्ध के बच्चों की मां भोजन लेकर घोसले में आई तो वे उस भाई बहन की कहानी को बताने लगे। उनकी बात सुनकर गिद्ध की मां को नीचे बैठे भाई बहन पर काफी दया आई और बच्चों को आश्वासन दिया कि वह उनकी समस्या का समाधान करेगी। यह सुनकर गिद्ध के बच्चों ने भोजन ग्रहंण किया।

दया और ममता से वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली कि मैंने आपकी समस्याओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल फूल मिलेगा मैं आपके लिए ले आती हूं तथा प्रात: काल मैं आपको सिंहलद्वीप धोबिन के पास पहुंचा दूंगी। अगले दिन सुबह होते ही गिद्ध माता ने दोनों भाई बहनों को समुद्र पार कराकर सिंहलद्वीप सोमा के पास पहुंचा दिया।

गुणवती प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पहले सोमा का घर लीप दिया करती थी, एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि प्रतिदिन सुबह हमारा घर कौन लीपता है। बहुओं ने तारीफ बटोरने के लिए कहा कि हमारे अलावा और कौन ऐसा करेगा, लेकिन सोमा को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ और वह यह जानने के लिए पूरी रात जागती रही। तभी उसने सुबह गुणवती को घर साफ करते हुए देख लिया और उससे उसकी परेशानी पूछा। गुणवती ने अपनी परेशानी बताया, जिसे सुन सोमा चिंतित हो गई और उसके घर जाकर पूजापाठ करने के लिए तैयार हो गई।

सोमा ने ब्राह्मण के घर आकर पूजा किया, लेकिन इसके बावजूद गुणवती का विवाह होते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने अपने सभी पुण्य गुणवती को दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो गया। लेकिन पुण्यों की कमी से सोमा के पति और बेटे की मृत्यु हो गई। सोमा ने सिंहलद्वीप लौटते हुए रास्ते में पीपल वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन कर 108 बार पीपल की परिक्रमा की। इसके पुण्य प्रताप से परिवार के सभी सदस्य जीवित हो उठे।

इस प्रकार मौनी अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान कर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने व पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा परिवार के सदस्यों पर भगवान का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।

डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है। 
 

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