- सावन मास के महत्वपूर्ण त्योहारों में नाग पंचमी भी है
- इस पर्व को मनाने का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है
- नाग पंचमी मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं
नाग पंचमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जिस पर नाग देवता की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना होती है। हर साल नाग पंचमी का त्योहार सावन की शुक्ल पक्ष की पंचमी को पड़ता है। इस दिन नागों को दूध और लावा चढ़ाने की परंपरा भी है। वहीं घरों में नागों की तस्वीरें भी लगाई जाती हैं। साल 2020 में नाग पंचमी को 25 जुलाई यानी शनिवार को मनाया जाता है।
वैसे नाग पंचमी का उल्लेख कई पुराणों में भी है। इसे मनाने के पीछे कई कहानियां बताई जाती हैं। यहां जानें नाग पंचमी से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं को।
पहली कथा – राजकुमार को मिला संतान आशीर्वाद
एक राज्य के राजा के सात पुत्र थें राजा उनसे बहुत प्रेम करता था। जब सभी पुत्र बड़े होने लगे तो उसने एक एक करके सभी पुत्रों की शादी करा दी। शादी के बाद सभी राजकुमारों को संतान की प्राप्ति हुई पर सबसे छोटे राज कुमार को कोई संतान न हुई। उसने बहुत प्रयास किया कई वैद्यों को दिखाया, बाबाओं को दिखाया पर कुछ न हुआ। ऊपर से उसकी पत्नी को हर रोज बंझ होने के ताने लोगों से अलग मिल रहे थे जिससे वह काफी दुखी रहने लगी।
यह सब देख कर राजकुमार दुखी हो जाता और अपनी पत्नी को समझाता की संतान होना न होना यह सब भाग्य की बात है तुम इस पर दुखी मत हुआ करो। केवल संतान होने न होने से कोई व्यक्ति अच्छा या खराब नहीं होता। पती की इन बातों को सुन कर पत्नी कुछ देर के लिए शांत हो जाती पर फिर जब कभी कोई उसे ताना देता तो वह रोने लगती।
एक रात पति पत्नी दोनो सो रहे थे। सोते वक्त पत्नी को एक सपना आता है कि पांच नाग उसके पास आएं और बोले कि हे पुत्री तुम इतनी दुखी क्यों हो रही हो। कल नाग पंचमी है। तुम हमारी पूजा करो, तुम्हें संतान का सुख मिलेगा। सपने के बाद पत्नी अचानक उठ जाती है और सारी बात पति को बताती है।
पति उसकी बात सुनकर कहता है कि ठीक है कल तुम पूजा कर लो पांच नागों की तस्वीर बनाना और उनको ठण्डा दूध चढ़ाना। दूसरे दिन पत्नी ठीक वैसा ही करती है और नौ महीने बाद उसे संतान की प्राप्ति होती है।
दूसरी कहानी – नागिन छोड़ देती है बदला
एक राज्य में एक किसान का परिवार रहता था, जिसमें पांच सदस्य रहते थे। किसान, किसान के दो पुत्र एक पुत्री और उसकी पत्नी एक दिन किसीन अपना खेत जोत रहा था अचानक से उसके हल के नीचे सांप के तीन बच्चे कुचल कर मर जाते हैं जिसे देख उन बच्चों की मां नागिन क्रोधित हो जाती है और वह उस किसान से बदला लेने का ठान लेती है।
दूसरे दिन मध्यरात्रि को वह किसान के घर में घुसती है और किसान उसके दोनों पुत्र और उसकी पत्नी को डस लेती है जिस कारण उन सबकी मृत्यु हो जाती है। सुबह जब नागिन उसकी बेटी को भी डसने आती है तो किसान की बेटी उसके सामने दूध का कटोरा रख देती है और रोते माफी मांगने लगती है उसे देखकर नागिन का दिल पसीज जाता है और वह उन सबको माफ कर देती है और पूरे परिवार को फिर से जिंदा कर देती है। लोग कहते हैं उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी इसीलिए तब से नागपंचमी मनाई जाने लगी।
तीसरी कथा – कालिया नाग की कहानी
यह कथा द्वापर युग की है जब भगवान श्री कृष्ण को कंस ने मारने के लिए भयानक कालिया नाग को भेजा था। कालिया नाग जमुना के भीतर बैठा पूरे जमुना को विषैला बना देता है। जिससे नदी के आसपास के सारे जानवर और मनुष्य उस पानी को पी कर मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे।
एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ उसी जमुना के किनारे खेल रहे थे, खेलते खेलते उनकी गेंद जमुना के भीतर चली जाती है जिसे निकालने के लिए श्री कृष्ण स्वयं जमुना में उतरते हैं। जहां उनका कालिया नाग से भीषण युद्ध होता है और इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग को मार देते हैं और वृंदावन को उसके आतंक से मुक्त कराते हैं। लोग कहते हैं कि उस दिन के बाद से ही नाग पंचमी मनाई जाने लगी।
चौथी कथा – शेषनाग ने उठाई थी धरती
एक पौराणिक कथा के अनुसार आज ही के दिन इस पृथ्वी के रचनाकार ब्रह्मा जी ने शेषनाग को यह कार्यभार सौंपा था कि वह इस पृथ्वी को अपने फन पर धारण करें और इसके भार को संभाले। तभी से यह परंपरा चली आई कि इस दिन नागों की पूजा होगी और इसे नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।