- नाग पंचमी पर वाराणसी के कुएं पर लगता है मेला
- कुएं के अंदर मौजूद हैं सात कुएं, पाताल लोक के लिए जाता है रास्ता
- मान्यता है कि यहां के दर्शन मात्र से ही काल सर्प दोष ठीक हो जाता है
हिंदू धर्म में हर एक त्योहार आस्था से भरा होता है, हर एक त्योहार को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार महीने, तिथि, और समय को देखते हुए कई त्योहार निश्चित किए जाते हैं, ऐसे ही सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं, खास तौर पर नाग की। नाग पंचमी के दिन नाग को दूध से स्नान कराया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार नाग को दूध से स्नान करवाने पर जोर दिया जाता है। नागपंचमी के दिन खास तौर से अष्ट नाग की पूजा की जाती है।
आपने नागपंचमी से जुड़ी कई प्रसिद्ध कहानियां सुनी होंगी,कई मंदिरों में दर्शन करने गए होंगे, और भाग्य से नागपंचमी के दिन नाग को दूध से स्नान भी करवाया होगा। लेकिन आज जिस जगह की हम बात करने वाले हैं, शायद ही आपको इस जगह के बारे में पता होगा। क्या है इस जगह की अद्भुत कहानी और वाराणसी का नाग कुआं मेला क्यों मनाया जाता है? चलिए जानते हैं।
कुएं के बारे में प्रचलित कई कहानियां:
वाराणसी के जैतपुर में स्थित इस कुएं के बारे में तमाम कहानियां है। कोई इसे पाताल लोक का रास्ता कहता है तो कोई इसे नागों का घर। एक कहानी के अनुसार, एक बार नागराज तक्षक वाराणसी संस्कृत की शिक्षा लेने आए। लेकिन उन्हे गरुण देव से भय था जिसकी वजह से वह बालक रूप में बनारस आएं। गरूण देव को इस बात का पता चल गया कि तक्षक बनारस में है और उन्होंने उस पर हमला कर दिया। हालांकि अपने गुरू का प्रभाव होने के नाते गरुण देव को तक्षक नाग को अभय दान देना पड़ा।
दूर होता है काल सर्प दोष
माना जाता है कि आक्रमण के दौरान तक्षक नाग इसी कुएं में छिपा था और यही पाताल लोक का रास्ता है। उसी दिन से यहां नाग पंचमी के दिन एक विशाल मेला लगता है। लोगों का मानना है कि यहां के दर्शन मात्र से ही काल सर्प दोष ठीक हो जाता है।
इस मेले में सबसे पहले पंप द्वारा कुएं का सारा पानी बाहर निकाला जाता है उसके बाद उसमें जो शिवलिंग स्थापित है उसका श्रृंंगार कर के पूजा-पाठ करके वापस रख दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद अपने आप 1 घंटे में कुआं वापस भर जाता है।
कुएं के अंदर कुएं
एक कहानी के अनुसार इस कुएं के अंदर सात और कुएं हैं। इसलिए लोग इसे पाताल लोक का द्वार भी कहते हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में केवल तीन ही जगह कालसर्प दोष की पूजा होती है, उनमें यह नाग कुआं पहले स्थान पर है।