- निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशी का मिलता है फल
- निर्जला एकादशी में पानी पीना भी होता है वर्जित
- सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का होता है खास महत्व
Nirjala Ekadashi 2022 Puja Vrat Ktha: एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण में दो एकादशी तिथि पड़ती है, जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सभी एकादशी व्रत का विशेष महत्व होत है और इनसे जुड़ी कथा भी होती है। निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन होता है। क्योंकि इस व्रत में निर्जला यानी पानी तक नहीं पिया जाता है। इसलिए ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले निर्जला एकादशी को भक्ति और साधना का अनूठा पर्व कहा जाता है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत शुक्रवार, 10 जून 2022 को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया। तब युधिष्ठिर ने कहा, जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसके बारे में बताएं। भगवान श्री कृष्ण बोले, हे राजन इसके बारे में तो परम धर्मात्मा सत्यवती नन्दन व्यासजी ही बताएं। तब वेदव्यासजी ने कहा कि, दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अन्त में स्वयं भोजन करना चाहिए।
वेदव्यासजी की बात सुनकर भीमसेन बोले, राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव भी एकादशी के दिन कभी भोजन नहीं करते और मुझसे भी भोजन न करने को कहते हैं। लेकिन मुझसे भूख सहन नहीं होती। भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी बोले, यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट लगती है तो दोनों पक्षों की एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए।
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व्यासीजी ने दी व्रत रखने की सलाह
भीमसेन बोले, मैं सच कहता हूं। मुझसे बिना भोजन किए व्रत व उपवास नहीं किया जाता। मुझे हमेशा भूख लगती है और अधिक भोजन करने के बाद ही शांत होती है। इसलिए महामुनि! मैं हर माह में दो नहीं बल्कि पूरे वर्ष में एक ही उपवास कर सकता हूं, जिससे कि मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो और मैं कल्याण का भागी बन सकूं। यदि ऐसा कोई एक व्रत हो तो बताइये। व्यासजी भीम से कहते हैं, ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी में निर्जल व्रत करो। इसमें केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। इसके अलावा किसी प्रकार से जल ग्रहण नहीं करना चाहिए, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।
मात्र निर्जला एकादशी के व्रत से वर्षभर में पड़ने वाली सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। स्त्री या पुरुष जो भी इस एकादशी व्रत के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है। व्यासजी के कहने पर भीमसेन ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा से निर्जला एकादशी का व्रत रखा। इसलिए निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)