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Tryodashi Shradh 2020 : त्रयोदशी श्राद्ध पर मघा नक्षत्र का खास संयोग, क्‍यों कहते हैं इसे पितृ दीपावली

Updated Sep 15, 2020 | 06:37 IST

Trayodashi Shradh: पितृ पक्ष की त्रयोदशी पर इस तिथि को मृत्यु प्राप्त किए पितरों के साथ ही मृत बच्चों के श्राद्ध का विधान है। इस बार मघा नक्षत्र पर त्रयोदशी पड़ने के कारण इसका महत्व अधिक हो गया है।

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Trayodashi Shradh, त्रयोदशी श्राद्ध
मुख्य बातें
  • पितृपक्ष त्रयोदशी पर अल्प आयु में मरे बच्चों के लिए श्राद्ध किया जाता है
  • इस दिन दूध से तर्पण देने और श्राद्ध में खीर बनाने का विधान है
  • श्राद्ध किसी का कोई भी कर सकता है, लेेकिन तभी जब योग्य श्राद्धकर्ता न हो

मघा नक्षत्र और त्रयोदशी तिथि का संयोग पितरों के लिए खास माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों को असीम संतुष्टि की प्राप्ति होती है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर मुख्यत: उन बच्चों का श्राद्ध किया जाता है जो बहुत ही कम आयु में दुनिया छोड़ देते हैं। इस दिन का श्राद्ध मुख्यत: फल्गु नदी के किनारे करना चाहिए। नदी में स्नान के बाद पितरों को दूध से तर्पण करने का विधान है।

त्रयोदशी पर केवल तर्पण, देव दर्शन व दीपदान ही करने का विधान है। इसे पितृ दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सभी पितर गयाधाम में उपस्थित होते हैं। श्राद्ध में इस दिन खीर जरूर रखना चाहिए। त्रयोदशी श्राद्ध को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।

गुजरात में त्रयोदशी को काकबली एवं बालभोलनी तेरस के नाम से और उत्तर भारत में इसे तेरस श्राद्ध भी कहा जाता है। पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं और पितरों के तर्पण और श्राद्ध को हमेशा कुतप समय पर करना चाहिए। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध से जुड़े अनुष्ठान जरूर कर लेने चाहिए। श्राद्ध के अन्त में तर्पण करना चाहिए।

जानें त्रयोदशी पर कुतप समय और अवधि

त्रयोदशी श्राद्ध मंगलवार, 15 सितंबर

कुतप मूहूर्त - सुबह 11:51 से दोपहर 12:41 तक

जानें कौन कर सकता है त्रयोदशी का श्राद्ध 

पुत्रों को श्राद्ध करने का अधिकार है, लेकिन  पुत्र न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। बच्चों का श्राद्ध पिता कर सकते हैं और यदि पिता न हो तो भाई  कर सकते हैं। यदि भाई न हो तो बहन के पति या मां कर सकती है। पितरों का श्राद्ध नियमानुसार करना चाहिए। इसलिए यदि मृतक का कोई नहीं तो जो भी उसे अपना समझे उसके लिए श्राद्ध कर सकता है। श्राद्ध में महिला या पुरुष का भेद नहीं है। श्राद्ध के बाद ब्रााह्मणों को भोजन और पंचबलिकर्म के साथ दान-पुण्य भी जरूर करना चाहिए।

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