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Putrada Ekadashi Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी पर पढ़ें यह पुण्यदायिनी पौराणिक कथा, सभी इच्छाए होंगी पूरी 

Updated Jan 13, 2022 | 06:09 IST

Putrada Ekadashi2022 Vrat Katha in Hindi: सनातन धर्म में पुत्रदा एकादशी का पर्व बहुत विशेष माना गया है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

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पुत्रदा एकादशी की कथा (Pic: iStock)
मुख्य बातें
  • आज यानि 13 जनवरी को मनाई जा रही है पुत्रदा एकादशी।
  • पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है यह पर्व।
  • भगवान विष्णु को समर्पित है पुत्रदा एकादशी।

Putrada Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi: पुत्रदा एकादशी का पर्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक महत्व रखने वाला यह पर्व 13 जनवरी को है। भारत के कई राज्यों में इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी का शुभ पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है, इस दिन विधिपूर्वक भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का पर्व अमोघ माना गया है। इसके साथ भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद कथा का पाठ करना भी महत्वपूर्ण माना गया है। 

पुत्रदा एकादशी की कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज करता था जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के पास सुख-संपत्ति और धन-धान्य सब कुछ था लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। कुल के अंधकारमय को देखकर वह दोनों चिंतित रहा करते थे। एक दिन राजा के मन में उसके मृत्यु के बाद पिंडदान की चिंता सता रही थी। वह राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर भी परेशान था। एक दिन इन चिंताओं से तंग आकर उसने प्राण त्यागने का निर्णय लिया लेकिन पाप के डर से उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन वह जंगल की ओर शिकार करने के लिए चला गया।

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जंगल में पशु-पक्षी को देखकर उसके मन में बुरे विचार आने शुरू हो गए जिसके बाद वह दुखी हो गया। पास में एक तालाब के किनारे वह जाकर बैठ गया। इस तालाब के किनारे ऋषि-मुनियों के आश्रम थे। ऋषि मुनियों के आश्रम देखकर राजा उनके आश्रम में चला गया। राजा को देखकर ऋषि मुनि भी प्रसन्न हुए और राजा से उसकी इच्छा पूछने लगे। राजा ने ऋषि मुनियों को बता दिया कि उसकी कोई संतान नहीं है और उसे इस बात की चिंता सताती है। जिसके बाद ऋषि मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत करने को कहा। ऋषि मुनियों की बात मानकर राजा ने यह व्रत रखा और इस व्रत के फल स्वरुप उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। 

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