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Radha Ashtami Vrat Katha: एक साथ पाएं श्री कृष्‍ण और राधा का आशीर्वाद, पढ़ें राधा अष्टमी व्रत कथा ह‍िंदी में

Updated Sep 14, 2021 | 06:21 IST

radha ashtami 2021, Radha Ashtami Vrat Katha in hindi, Radha ji ki birth story : हिंदू धर्म में राधा अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। इसके ब‍िना जन्‍माष्‍टमी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता।

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राधा अष्टमी की व्रत कथा
मुख्य बातें
  • राधा अष्टमी 2021 में 14 सितंबर को मनाई जाएगी
  • हिंदू धर्म में जन्माष्टमी की तरह ही राधा अष्टमी का महत्व है
  • राधा अष्टमी का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है

Radha Ashtami Vrat Katha 2021: हिंदू शास्त्र में राधा का नाम हमेशा कृष्ण के साथ ही लिया गया हैं। राधा भगवान श्री कृष्ण के बिना अधूरी मानी जाती है। राधा अष्टमी व्रत में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी बेहद अनिवार्य मानी जाती हैं। यह पर्व जन्माष्टमी की तरह है मनाई जाती है। हर साल यह जन्माष्टमी के 15 दिन के बाद मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। 

इस साल यह 14 सितंबर मंगलवार के दिन मनाई जाएगा। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा के साथ करता है, उसके ऊपर भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद सदा बना रहता हैं। यदि आप भी इस व्रत को करना चाहते हैं या अपने घर में मां लक्ष्मी का वास सदैव घर में बनाएं रखना चाहते हैं, तो इस व्रत को जरूर करें। यहां आप इस व्रत की पूरी कथा पढ़ सकते हैं।

Radha Ashtami Vrat Katha in hindi, राधा अष्टमी व्रत कथा, राधा जी की जन्‍म कथा 

मान्यता है कि भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य हुआ था, इसलिए राधा अष्टमी मनाई जाती है। पद्म पुराण के अनुसार राधा जी महाराजा वृषभानु की सुपुत्री थीं। उनकी माता का नाम कीर्ति था। एक बार जब महाराजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे, उस समय उनको भूमि पर राधाजी मिलीं थीं।

ऐसी कथा भी मिलती है कि जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म ल‍िया तो उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थीं और उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। ऐसे भी उल्‍लेख हैं क‍ि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थीं।

हिंदू शास्त्र के अनुसार माता राधा को शाप की वजह से पृथ्वी पर आकर भगवान श्री कृष्ण का वियोग सहना पड़ा था। हिंदू पुराण के अनुसार एक बार जब माता राधा स्वर्ग लोक से कहीं बाहर गई थी, उस वक्त श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। वापस आने पर दोनों को साथ देख राधा नाराज हो गईं और व‍िरजा का अपमान कर द‍िया। 

लज्जा वश व‍िरजा नदी बनकर बहने लगी। राधा के व्‍यवहार पर श्री कृष्ण के परम प्रिय मित्र सुदामा को बहुत ही गुस्सा आ गया और वह कान्‍हा का पक्ष लेते हुए राधा से क्रोधित होकर बात करने लगे। सुदामा का इस तरह का व्यवहार देखकर राधा और भी नाराज हो गई और उन्होंने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी बिना सोचे समझे राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा के श्राप की वजह से सुदामा शंखचूड़ नामक का नामक दानव बने, जिसका वध बाद में भगवान शिव ने किया।

वहीं सुदामा के दिए गए श्राप की वजह से राधा जी को भी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर आना पड़ा और भगवान श्री कृष्ण का वियोग सहना पड़ा।

(note : ये लेख आम धारणाओं पर आधार‍ित है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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