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Krishna Janmashtami 2022: क्यों दो दिन मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी, दो दिन तक इस वजह से नहीं सोते भक्त

Updated Aug 04, 2022 | 22:49 IST

Krishna Janmashtami 2022 Shubh Muhurat: हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव 18 अगस्त को मनाया जाएगा। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार कई जगह कृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन तक भक्त बिना सोए भगवान की अराधना में लीन होते हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Krishna Janmashtami
मुख्य बातें
  • हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 18 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी
  • कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है
  • हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था

Krishna Janmashtami 2022 Puja Vidhi: कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है। कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर साल मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 18 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन रात में पूजा की जाती है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात 12:00 बजे हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार साल के बड़े त्योहारों में एक है। इस दिन मथुरा, वृंदावन और द्वारिका में विधि विधान से पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हर साल दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन साधु- सन्यासी, शैव संप्रदाय मनाता है, जबकि दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय और बृजवासी इस त्योहार को मनाते हैं। ऐसे में भक्तों दो रात बिना सोए भगवान श्री कृष्ण की आराधना में लीन हो जाते हैं।

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जानिए, क्यों मनाई जाती है दो दिन जन्माष्टमी
जन्माष्टमी का त्योहार 2 दिन बनाए जाने के पीछे कई मान्यता है। ज्यादातर लोग पहले दिन जन्‍माष्‍टमी स्‍मार्त मनाते हैं और इसके बाद वाले दिन वैष्‍णव भगवान के जन्म उत्सव को मनाते हैं। स्‍मृति आदि धर्मग्रंथों को मानने वाले और इसके आधार पर व्रत के नियमों का पालन करने वाले स्‍मार्त कहलाते हैं। दूसरी ओर, विष्‍णु के उपासक या विष्‍णु के अवतारों को मानने वाले वैष्‍णव कहलाते हैं। कहना का अर्थ है कि साधु-संत स्‍मार्त की श्रेणी में आते हैं, जबकि गृहस्‍थ वैष्‍णव की श्रेणी में।

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जानिए, क्यों स्‍मार्त व वैष्‍णव अलग अलग मनाते हैं जन्माष्टमी
स्‍मार्त कृष्‍ण जन्माष्टमी मनाने के लिए कुछ खास योग देखते हैं और उसी के आधार पर व्रत का दिन तय करते हैं। ये योग भाद्रपद मास के कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी तिथि, चंद्रोदय व्‍यापिनी अष्‍टमी और रात में रोहिणी नक्षत्र का संयोग देखकर जन्माष्टमी मनाते हैं।  स्‍मार्त अष्‍टमी या इन संयोगों के आधार पर सप्‍तमी को जन्‍माष्‍टमी मनाते हैं।  वैष्‍णव भी इस उत्‍सव को मनाने के लिए कुछ योग देखते हैं। जैसे भाद्रपद मास के कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी तिथि हो, उदयकाल में अष्‍टमी तिथि‍ हो और अष्‍टमी तिथि‍ को रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो। इसलिए ये जन्‍माष्‍टमी अष्‍टमी तिथि को मनाते हैं।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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