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Shukravar Vrat Katha: शुक्रवार को संतोषी माता की पूजा का है विशेष महत्व, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा

Updated Jan 29, 2021 | 19:42 IST

Shukravar Vrat Katha,santoshi Mata Vrat Katha: संतोषी मां की व्रत कथा पढ़ने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार के दिन यह कथा पढ़ने और विधिवत पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है

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संतोषी माता की व्रत कथा।

नई दिल्ली:  शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा की जाती है। उन्हें लक्ष्मी का रूप भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार के दिन यदि कुंवारी कन्या माता संतोषी की पूजा सच्चे मन से कर ले तो उन्हे मनचाहा पति मिलता है। शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत कर कन्याओं को खिलाने से अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी संतोषी माता का व्रत करते हैं, तो आप यहां पूजा कथा देखकर पढ़ सकते हैं। तो आइए जाने क्या है, संतोषी माता की व्रत कथा।

संतोषी माता की व्रत कथा (Santoshi Maa Vrat Katha)

एक बार की बात हैं। एक गांव में एक बुढ़िया (वृद्ध महिला) रहती थी। उसका एक पुत्र था। बुढ़िया अपने पुत्र के विवाह के बाद घर का सारा काम अपनी बहू से करवा कर उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। और यह सब उसका लड़का देखता था, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं  होती थी अपने मां से इस पर चर्चा करने की और उसे ऐसा करने से रोके।

दिन भर बहू उपले बनाना, रोटी बनाना, बर्तन साफ करना, कपड़े धोना जैसा काम करती रहता थी। एक दिन यह सब देख कर उसके पुत्र से रहा नहीं गया और उसने अपनी मां से पूछा, मां मैं परदेस जा रहा हूं। बेटा के परदेश जाने की बात मां को बहुत पसंद आई और उसने जाने की आज्ञा भी दे दी।

इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला मैं परदेस जा रहा हूं। अपनी कुछ निशानी मुझे दे दो। तब उसकी पत्नी बोली- मेरे पास निशानी देने योग्य कुछ भी चीज नहीं है और कह कर अपने पति के चरणों में रोने गिर कर रोने लगी। गिरने के दौरान उसके हाथों में लगे गोबर की छाप उसके पति के जूतों पर बन गए और वहीं छाप लिए उसका पति वहां से चला गया।

पति के जाने के बाद बुढ़िया यानी उसकी सास का अत्याचार और भी बढ़ गया था। एक दिन बहू बहुत दुखी होकर मंदिर चली गई। वहां उसने देखा की बहुत सारी स्त्रियां पूजा कर रही हैं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली और बोली मैं भी संतोषी माता का व्रत करना चाहती हूं ताकि हमारे सारे कष्ट दूर हो जाए।  

यह सुनकर महिलाओं ने कथा बताकर उससे कहा कि तुम शुक्रवार को सुबह-सुबह नहा कर एक लोटे में शुद्ध जल लेकर, गुड़ चने का प्रसाद  लेकर सच्चे मन से मां का पूजन करना। उस दिन तुम खट्टी चीज मत खाना और ना ही किसी को देना। एक ही वक्त भोजन करना। यह सुनकर बहू प्रत्येक शुक्रवार को माता संतोषी का व्रत करने लगी।

माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद उसके पति का एक पत्र आया और कुछ दिनों के बाद माता की कृपा से घर में पैसे भी आने लगें। यह सारी बात उसने मंदिर में जाकर सभी स्त्रियों से कहा। इस स्त्रियां यह सुनकर माता संतोषी का व्रत और श्रद्धा के साथ करने लगी। बहू ने माता से कहा हे मां जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी। तभी एक रात संतोषी मां ने उसके पति को सपना दिया और कहा कि तू अपने घर क्यों नहीं जाता। ऐसा कहने पर तो वह कहने लगा कि सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं हैं, रुपया अभी नहीं आया है।

यह बात लडके ने सेठ को जाकर कहा और घर जाने की इच्छा जताई। सेठ ने उसे घर जाने से मना कर दिया। तब मां की कृपा से कई व्यापारी आकर सोना, चांदी और अन्य सामान खरीदने लगे। तब साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां और पत्नी को बहुत सारा पैसा दिया। पत्नी ने कहा मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को उद्यापन के लिए न्योता दे दिया और सारी तैयारी करने लगी। यह देखकर उसकी पड़ोसन उससे ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चे को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरुर खा लेना।

उद्यापन के समय खाना खाते खाते बच्चे अचानक खटाई के लिए कहने लगे। तब बहू ने पैसा देकर उन्हें उस बात को भुला दिया। लेकिन बच्चे दुकान में उन पैसों से इमली की खटाई खरीद कर खा लिए। यह देखकर माता बहू पर गुस्सा हो गई। तब उसी वक्त राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले जाने लगे, तो किसी ने उसी समय बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसे से इमली खटाई खाई है, इसी वजह से तुम्हारा यह हाल हुआ है। तभी बहू ने फिर से व्रत के उद्यापन का संकल्प किया। संकल्प लेकर जब वह मंदिर से निकलकर जा रही थी कि उसी वक्त उसने अपने पति को आता देखा। पति ने कहा इतना धन जो कमाया है उसका कर राजा ने मुझसे मांगा था। इसलिए ये मुझे ले गए थे। तब बहू ने फिर से अगले शुक्रवार को विधिवत व्रत का उद्यापन किया है। इसके बाद संतोषी मां प्रसन्न हुई हो गई और उनकी प्रसन्नता के साथ 9 माह में बहू को एक चांद सा पुत्र हुआ। इस प्रकार बहू बेटा और साथ सास सभी आनंद के साथ रहने लगें।

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