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Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा, जानें क्या है संतान सुख देने वाले इस व्रत की महिमा

Updated Aug 08, 2022 | 09:04 IST

Sawan Putrada Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi: पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत को सच्चे मन से करने से संतान की प्राप्ति होती है।

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Sawan Putrada Ekadashi vrat katha 2022

Sawan Putrada Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी व्रत (Sawan Putrada Ekadashi) का बहुत खास महत्व है। भारत के कई राज्यों में इस एकादशी को पवित्रा एकादशी (Sawan Putrada Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत (Sawan Putrada Ekadashi 2022) को भक्ति पूर्वक करने से संतान की प्राप्ति होती है। यदि आप भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने की सोच रहे है, तो आपको उस दिन इस कथा (Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha) को जरूर पढ़ना चाहिए। ऐसा कहा जाता है, कि इस कथा को पढ़ने से भगवान विष्णु बहुत जल्द प्रसन्न होकर सभी मुरादें पूर्ण कर देते हैं।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat katha)

प्राचीन काल में महिष्मति नगरी में महीजित नामक एक धर्मात्मा राजा रहता था। महर्षि राजा काफी शांत, ज्ञानी और दानी था। दानी होने के बावजूद राजा को कोई संतान नहीं थी। संतान न होने की वजह से वह हमेशा दुखी रहता था। एक दिन राजा अपने राज्य के सभी ऋषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्त होने के उपाय पूछनें लगा। राजा की इस बात को सुनकर ऋषि ने कहा 'हे राजन् तुमने पूर्व जन्म में सावन मास की एकादशी के दिन अपने तालाब से एक गाय को जल नहीं पीने दिया था।

इसी वजह से क्रोधित होकर उस गाय ने तुमको संतान न होने का श्राप दिया था। इसी कारण इस जन्म में तुम्हें कोई संतान नहीं है। ऋषि ने कहा हे राजन यदि तुम और तुम्हारी पत्नी पुत्र एकादशी का व्रत रखों, तो तुम इस श्राप से मुक्त हो सकते हो। तुम्हारे घर में भी बच्चों  किलकारियां गूंज सकती है। ऋषि की यह बात सुनकर राजा ने कहा, मैं अवश्य अपनी पत्नी के साथ आपके बताया हुए इस व्रत को करूंगा।

 राजा ने ऋषि के कहने के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से राजा शाप से मुक्त हो गया और उसकी पत्नी गर्भवती हुई। कुछ महीने बाद राजा के घर एक तेजस्वी शिशु में जन्म लिया। पुत्र के जन्म लेते ही राजा बहुत प्रसन्न हो गया। तब से वह हमेशा पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने लगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है, कि जो इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है, भगवान विष्णु उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करते हैं।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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