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Shri Shiv Rudrashtakam: फलदाई है शिव जी की 'श्री रुद्राष्टकम' स्तुति, सावन शिवरात्रि में जरूर करें इसका पाठ

Updated Jul 26, 2022 | 06:33 IST

Sawan Shivratri 2022, Shri Rudrashtakam Lyrics in Hindi: आज पूरे भारत में सावन शिवरात्रि की धूम है। हिंदू धर्म में यह तिथि बेहद विशेष मानी गई है। इस दिन शिव जी की पूजा करते समय भक्तों को श्री शिव रुद्राष्टकम का पाठ अवश्य करना चाहिए। यहां देखें इस स्तुति की लिरिक्स हिंदी में। 

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Shri Rudrashtakam Lyrics (Pic: iStock)
मुख्य बातें
  • आज रखा जा रहा है सावन शिवरात्रि का व्रत।
  • बेहद लाभदायक है श्री शिव रुद्राष्टकम स्तुति का पाठ।
  • सावन शिवरात्रि पर जरूर करें इस स्तुति का पाठ।

Sawan Shivratri 2022, Shri Rudrashtakam Lyrics In Hindi, Shri Shiv Rudrashtakam: देवों के महादेव का आज बेहद पवित्र पर्व है। आज पूरे भारत में सावन मास की शिवरात्रि मनाई जा रही है। भगवान शिव को प्रिय सावन मास की शिवरात्रि पर व्रत रखना तथा भोलेनाथ की पूजा करना श्रद्धालुओं के लिए लाभदायक माना जाता है। कहा जाता है कि श्रावण मास में भगवान शिव को श्रद्धा पूर्वक केवल एक लोटा जल अर्पित करने से ही वह बेहद प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे में अगर काम भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो सावन शिवरात्रि पर श्री शिव रुद्राष्टकम का पाठ अवश्य करें। यहां देखें भगवान शिव की पूजा आराधना के लिए श्री शिव रुद्राष्टकम स्तुति की लिरिक्स हिंदी में।

Sawan Shivratri 2022 Date, Time, Shubh Muhurat And All You Need To Know:

Shri Rudrashtakam Lyrics In Hindi, Shri Shiv Rudrashtakam

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
 
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
 
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
 
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

Sawan Shivratri 2022 Date And Puja Timings:
 
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
 
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
 
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
 
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
 
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 

॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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