- शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थी
- शबरी का असली नाम 'श्रमणा' था
- वह भील समुदाय के शबर जाति की थी
Shabri Jayanti 2021, Shabari Katha And Importance: शबरी श्री राम चंद्र की बहुत बड़ी भक्तन थी। उनका असली नाम श्रमणा था। शबर जाति में जन्म होने के कारण उनका नाम श्रमणा था। हिंदू धर्म के अनुसार माता शबरी ने प्रभु श्री रामचंद्र के दर्शन के लिए अनेकों साल तक धैर्य रखकर कड़ी तपस्या की थी। इसलिए उनका नाम शबरी पड़ गया। ऐसी भक्ति में लीन रहने वाली माता शबरी की कथा और उनके पूजा का महत्व आइएं जाने।
माता शबरी की कथा (Shabari Katha)
भीलों के राजा की पुत्री माता शबरी थी। उनका विवाह उनके पिता ने भील के राज कुमार से तय किया था। उनके विवाह के लिए उनके पिता ने यह कहा था, कि जब उनकी पुत्री की शादी होगी उस दिन सैकड़ों भैंस-बकरे की बली दी जाएगी। जब माता शबरी को इस बात का पता चला, तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और वह यह सोचने लगी कि ऐसे विवाह का क्या फायदा जिसमे बेकसूर जानवरों की जान चली जाए। ऐसी विवाह करने से तो अच्छा विवाह न करना होगा। यह सोच कर वह रात में उठकर जंगल में चली गई। जब वह जंगल पहुंची, तो उन्होंने देखा कि हजारों ऋषि मुनि तपस्या में लीन होकर तप कर रहे हैं। वह यह देखकर सोचने लगी, कि मैं तो नीच जाति की हूँ, मैं इन तपस्वी के साथ इस जंगल में कैसे रह पाऊंगी। मुझे तो भजन, ध्यान और ऐसे भक्ति में लीन रहना बिल्कुल नहीं आता है। लेकिन माता शबरी के हृदय में भगवान श्री रामचंद्र के लिए बहुत ही स्नेह था।
जिस कारण से उनके अंदर यह सारे गुण स्वत ही आ गए। शुरू-शुरू में जब ऋषि कहीं भी बाहर निकलते, तो माता शबरी उनके रास्ते से कंकड़ पत्थर हटाते हुए साफ करती थी और जंगल से लकड़ियां चुनकर ऋषि-मुनियों को यज्ञ करने के लिए दिया करती थी। यह सब कार्य वह ऋषियों से छिपाकर करती थी। मतंग ऋषि माता शबरी की भक्ति को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए और अपनी कृपा उनके ऊपर बनाई। बहुत दिनों के बाद जब मतंग ऋषि वृद्ध हो गए और वह मरने की स्थिति में हो गए, तो यह देखकर शबरी बहुत ही व्याकुल हो गई। माता शबरी को व्याकुल देख मतंग ऋषि ने उन्हें बुलाया और उन्हें धैर्य रखकर भगवान श्री रामचंद्र की आराधना करने को कहा। उन्होंने कहा, प्रभु के हृदय में किसी के लिए भेदभाव नहीं होती है। वह तुम्हारी कुटिया में तेरी तपस्या से खुश होकर जरूर पधारेंगे।
यह कहकर ऋषि मुनि स्वर्ग लोक को पधार गए। यह सारी बातें सुनकर उस दिन से माता शबरी उस कुटिया में रहकर कुटिया से लेकर बाहर के रास्ते को हमेशा साफ करती थी। ऐसा जान पड़ता था, कि मानो भगवान श्री रामचंद्र आज ही उनकी कुटिया में पधारने वाले हैं। बहुत वर्षों बाद मतंग ऋषि मुनि की वचन सत्य हुई और सबकी पीड़ा दूर करने वाले भगवान श्री रामचंद्र माता शबरी की कुटिया में पधारें। माता उन्हें देखकर इतनी प्रश्न हो गई, कि प्रभु श्री रामचंद्र के मुख में खट्टे बैर न जाए, इस कारण से माता हर बैर को स्वयं खाकर देखने लगी और जूठे बेर भगवान श्री रामचंद्र को खिलाने लगीं। भगवान माता की भक्ति को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। इस तरह से माता की प्रभु के दर्शन करने की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई।
शबरी पूजा का महत्व S(habari Puja)
हिंदू धर्म में शबरी जयंती का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान श्री राम की असीम कृपा पाकर माता शबरी मोक्ष गति को प्राप्त हुई थी। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान राम की भक्ति श्रद्धा पूर्वक करें, तो उसे भी मोक्ष की प्राप्त होती है।