- सावन मास में शनि प्रदोष का महत्व बहुत ज्यादा होता है
- 2027 में दोबारा मिलेगा ऐसा ही शनि प्रदोष का संयोग
- इस दिन पूजा करने से शनिदेव और शिवजी दोनाें ही प्रसन्न होते हैं
शनिवार के दिन अगर त्रोयदशी व्रत आता है तो उसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। इस बार सावन में यह संयोग मिलना बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। इस व्रत को रखने से शनि से जुड़े सभी दोष दूर होते हैं और भगवान शिव की कृपा भी मिलती है। इस एक व्रत से दोनों ही देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। शनि प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए और भी लाभकारी है, जो शनि की महादशा या साढ़ेसाती से जूझ रहे हैं।
सावन माह में आया यह संयोग अब सात साल बाद 2027 में फिर से बनेगा। इसलिए इस शुभ दिन पर व्रत और पूजा करने के अवसर को बिलकुल न गवाएं। भगवान शिव, शनि देव के आराध्य गुरु माने गए हैं। इसलिए इस दिन की पूजा गुरु-शिष्य दोनों से ही वरदान पाने की है। तो आइए जानें, शनि प्रदोष की कथा, पूजा विधि और महत्व को जानें।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनि प्रदोष का व्रत और पूजा करने से शनि के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। ढैय्या, साढ़ेसाती और शनि की महादशा से जूझ रहे लोगों को इस दिन जरूर पूजा-पाठ और व्रत रखना चाहिए। इस दिन पूजा करने से कार्यक्षेत्र में आने वाली समस्याएं, नौकरी पर संकट,रोग या अल्पायु का संकट दूर हो जाता हैऔर और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। इस पूजा से सहस्त्र गोदान का पुण्य प्राप्त होता है। संतान सुख की प्राप्ति भी होती है।
शनि प्रदोष की ऐसे करें पूजा
शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शनि की पूजा के साथ भगवान शिव की पूजा भी करनी चाहिए। शनि देव की पूजा में उनकी पसंद की चीजें अर्पित जरूर करें। जैसे, काला तिल, काला वस्त्र, तिल का तेल और उड़द आदिं। सुबह स्नान आदि का व्रत और पूजा का संकल्प लें। याद रखें शनिदेव की पूजा शाम के समय ही करें। जबकि शिवजी की पूजा सुबह करें। शिव प्रदोष के दिन शनि स्त्रोत शनि चालिसा का पाठ जरूर करें। इस दिन शनिदेव से संबंधित कुछ विशेष उपाय करने से दुर्भाग्य से भी मुक्ति मिलती है। शाम को शनिदेव के मंदिर में तिल के तेल का दीया जलाएं और काली चीजें आर्पित कर वहीं बैठकर पाठ करें। इसके बाद पीपल के पेड़ में भी दीप दान कर जल दें।
शनि प्रदोष में इन चीजों का करें दान
शनि प्रदोष के दिन गरीबों को कपड़े, अन्न, छाता और जूते-चप्पल दान करना गया है। शनिदेव का तेल से अभिषेक करें और तिल या सरसों का तेल दान में दें। काले वस्त्र, दाल आदि भी दान में देने चाहिए।
जानेंं, क्या है शनि प्रदोष कथा
एक सेठ के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं तो थीं, लेकिन संतान सुख नहीं था। इससे सेठ-सेठानी दोनों ही बेहद दुखी रहते थे। एक दिन सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर चल दिए। जैसे ही नगर के बाहर वह पहुंचे वहां उन्हें रास्ते में एक ध्यानमग्न साधु नजर आए। सेठ-सेठानी साधु के आशीर्वाद के लिए साधु के पास ही चुपचाप बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो देखा कि सेठ दंपति बैठे हैं। साधु उन्हें देखते ही उनके कष्ट से वाकिफ हो गए और कहा कि उनके कष्ट से वह परिचित हैं और इसका उपाय उन्हें बता रहे हैं।
साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि तुम दोनों को शनि प्रदोष व्रत करना होगा और इससे ही संतान सुख की प्राप्ति होगी। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बता दी। सेठ-सेठानी, साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी दोनों ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया इसके प्रभाव से उनके घर एक पुत्र की प्राप्ति हुई।