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Tulsidas Jayanti 2022: तुलसीदास जी के ये दोहे जीवन में लाएंगे कई बदलाव, सफलता की राह करेंगे आसान

Updated Aug 02, 2022 | 16:14 IST

Tulsidas Jayanti 2022 Date Time: तुलसीदास जयंती 4 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। तुलसीदास जयंती हर साल सावन महीने की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। तुलसीदास जी से जुड़े कुछ दोहे हैं जिसे व्यक्ति अपने जीवन में अपना ले तो सफलता की राह आसान हो जाएगी।

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तस्वीर साभार:&nbspIndiatimes
Tulsidas janamdivas
मुख्य बातें
  • इस साल तुलसीदास जयंती 4 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी
  • इस साल तुलसीदास की 523 वीं जयंती मनाई जाएगी
  • गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित्र मानस के रचयिता की थी

Tulsidas ke Dohe: सावन महीने में सप्तमी तिथि को हर साल तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। इस साल तुलसीदास जयंती 4 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। इस साल तुलसीदास की 523 वीं जयंती मनाई जाएगी। गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के कवि थे। उन्होंने राम चरित्र मानस के रचयिता की थी। वे विश्व के महान साहित्य कवियों में एक थे। उन्होंने हनुमान चालीसा, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, जानकी मंगल और बरवै रामायण जैसे 12 ग्रंथों की रचना की थी। आइए जानते हैं तुलसीदास से जुड़ी कुछ रोचक बातें व उनके दोहे और अर्थ के बारे में जिसे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

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दोहा
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
तुलसीदास जी कहते है कि जो मेरा शरीर है पूरा चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर है। फिर इस चमड़े से इतना मोह छोड़कर राम नाम में अपना ध्यान लगाते तो आज भवसागर से पार हो जाते।

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जब तक घट में प्राण।।
तुलसी दास जी कहते है कि धर्म दया भावना से उत्पन होता है और अभिमान जो की सिर्फ पाप को ही जन्म देता है। जब तक मनुष्य के शरीर में प्राण रहते है तब तक मनुष्य को दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

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राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूँ जौं चाहसि उजिआर।।
तुलसीदास जी कहते है कि हे मनुष्य यदि तुम अपने अन्दर और बाहर दोनों तरफ उजाला चाहते हो तो अपनी मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज पर राम नाम रूपी मणिदीप को रखो।

सरनागत कहूं जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावंर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।।
जो व्यक्ति अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है वे क्षुद्र और पापमय होते है। इनको देखना भी सही नहीं होता है।

काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
तुलसीदास जी कहते है कि जब तक किसी भी व्यक्ति के मन कामवासना की भावना, लालच, गुस्सा और अहंकार से भरा रहता है तब तक उस व्यक्ति और ज्ञानी में कोई अंतर नहीं होता दोनों ही एक समान ही होते है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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